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किताब…मेरी संगिनी

डॉ. आशा मिश्रा ‘आस’
मुंबई (महाराष्ट्र)
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विश्व पुस्तक दिवस स्पर्धा विशेष……

बचपन में चलने की दस्तक और हाथों में पुस्तक…
दोनों से रूबरू होने का मौक़ा अमूमन एक साथ हुआ,
‘क’ से कलम और ‘द’ से दवात..
इन वर्णाक्षरों से पहली मुलाक़ात,
आने वाली ज़िंदगी की नींव का पहला पत्थर..
पेंसिल की आड़ी-तिरछी अनगिनत खिंची हुई लकीरों से लेकर पेन के नुकीले असहाय दर्द…
उफ़्फ़ किए बिना इन किताबों ने सहा…
कभी फाड़ा गया,कभी मोड़ा गया,
इसने कभी किसी से कुछ ना कहा…।
नई किताब की छुअन….
किसी नवयौवना के पहले स्पर्श जैसा अदभुत,
उसकी भीनी ख़ुशबू,पहले सावन की भीगी सौंधी मिट्टी जैसी…
वो स्पर्श…वो ख़ुशबू…हर बार,हर किताब संग,
नई अनुभूति देने वाला..
रंग-बिरंगे आवरण के भीतर,सफ़ेद और काले रंगों से सधी अक्षरों की क़तारें,
हर शब्द और शब्दों से बने वाक्य में जीने और सीखने का फ़लसफ़ा..
जिसने घोंट कर पी लिया,
समझो वो जी लिया..।
सब कुछ उकेरा जा चुका था इन पन्नों पर,
प्यार नफ़रत,वेद,पुराण…
हर पन्ने पर ज्ञान ही ज्ञान,
पढ़ना ज़रूरी था,सीखना ज़रूरी था..
सच है,जिसने किताबों से दोस्ती की,
उसे किसी और की ज़रूरत कहाँ ??
हँसाती है ये किताब…
और दिल भरा जब कभी तो,
आँसू छुपाती है ये किताब..
बस्ते की क़ैद से,दो उँगलियों के बीच,
वो किताब ही तो थी…
कभी सिरहाने लग गई और कभी दिल के पास,
हमको सुला के ख़ुद जागती रही…।
जैसे-जहाँ छोड़ जाती…वैसी ही मिलती थी,
अपनी मर्ज़ी से ख़ुद के पन्ने भी नहीं पलटे कभी…
गठरी से लेकर पेटी तक,दराज़ से लेकर मेज़ तक,
हर जगह अपनी मौजूदगी,अपने साथ होने का मूक एहसास…
कितना सिखाया,सब कुछ बताया इसी किताब ने,
इंसान से लेकर भगवान की पहचान सब कुछ इसी किताब से
यही तो है जो जितनी पुरानी हुई,उसकी उतनी नई कहानी हुई…।
पन्नों के बीच,सलीक़े से रखा किसी के प्यार का फूल…
मुरझाने के बाद भी उसकी ख़ुशबू बाक़ी थी,
सालों के अंतराल के बाद…
उस एहसास को किताबों ने मरने ना दिया,
ज़माने से छुपा के रखा था…
आज भी जब कभी उन पन्नों को पलटने का मौक़ा मिला,
मैंने देखा है…
उन फूलों संग,किताब का चेहरा भी खिला-खिला..।
रद्दी की दुकान से,दोस्तों से,जहाँ मिली जैसी मिली,
मैंने बहुत सम्भाल कर रखा है इन किताबों को…
क्योंकि,हर किताब में एक कहानी है,
और हर किताब की एक कहानी है…
वक़्त निकलकर पढ़ लेती हूँ,
थोड़ी देर ही सही-उन यादों संग जी लेती हूँ…
जिस दिन किसी पुरानी किताब से मिलना होता है,
यक़ीन मानो उस दिन मैं नई-नई-सी लगती हूँ…
देर तक हँसती हूँ,मुस्कुराती हूँ,
आँखें भीग जाती हैं हँसते हुए।
किताब जानती है,
मैं इसके सहारे अपना दर्द छुपाती हूँ…॥

परिचय-डॉ. आशा वीरेंद्र कुमार मिश्रा का साहित्यिक उपनाम ‘आस’ है। १९६२ में २७ फरवरी को वाराणसी में जन्म हुआ है। वर्तमान में आपका स्थाई निवास मुम्बई (महाराष्ट्र)में है। हिंदी,मराठी, अंग्रेज़ी भाषा की जानकार डॉ. मिश्रा ने एम.ए., एम.एड. सहित पीएच.-डी.(शिक्षा)की शिक्षा हासिल की है। आप सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापिका होकर सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत बालिका, महिला शिक्षण,स्वास्थ्य शिविर के आयोजन में सक्रियता से कार्यरत हैं। इनकी लेखन विधा-गीत, ग़ज़ल,कविता एवं लेख है। कई समाचार पत्र में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। सम्मान-पुरस्कार में आपके खाते में राष्ट्रपति पुरस्कार(२०१२),महापौर पुरस्कार(२००५-बृहन्मुम्बई महानगर पालिका) सहित शिक्षण क्षेत्र में निबंध,वक्तृत्व, गायन,वाद-विवाद आदि अनेक क्षेत्रों में विभिन्न पुरस्कार दर्ज हैं। ‘आस’ की विशेष उपलब्धि-पाठ्य पुस्तक मंडल बालभारती (पुणे) महाराष्ट्र में अभ्यास क्रम सदस्य होना है। लेखनी का उद्देश्य-अपने विचारों से लोगों को अवगत कराना,वर्तमान विषयों की जानकारी देना,कल्पना शक्ति का विकास करना है। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद जी हैं।
प्रेरणापुंज-स्वप्रेरित हैं,तो विशेषज्ञता-शोध कार्य की है। डॉ. मिश्रा का जीवन लक्ष्य-लोगों को सही कार्य करने के लिए प्रेरित करना,महिला शिक्षण पर विशेष बल,ज्ञानवर्धक जानकारियों का प्रसार व जिज्ञासु प्रवृत्ति को बढ़ावा देना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘हिंदी भाषा सहज,सरल व अपनत्व से भरी हुई भाषा है।’

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