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जातिवाद का खात्मा कैसे हो ?

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ढाई लाख रु. का अनुदान देती है,याने यह पैसा उनको मिलता है,जो अनुसूचित जाति या वर्ग के वर या वधू से शादी करते हैं,लेकिन खुद होेते हैं सामान्य वर्ग के! सामान्य का अर्थ यहां ऊंची जाति ही है। याने ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्य! इनमें तथाकथित पिछड़े भी शामिल हैं। इस अनुदान-राशि के बावजूद देश में हर साल ५०० शादियां भी नहीं होतीं। सवा अरब लोगों के देश की इस हालत को `ऊंट के मुंह में जीरा` नहीं तो क्या कहेंगे ? इसका एक कारण सरकार ने अभी-अभी खोज निकाला है। वह यह है कि यह अनुदान राशि उन्हीं जोड़ों को मिलती है,जो अपना पंजीयन ‘हिंदू मैरिज एक्ट’ के तहत करवाते हैं। आर्य समाज आदि में हुई शादियों को यह मान्यता नहीं है। अब उन्हें मान्य कर लिया जाएगा। यह अच्छा है,सराहनीय है लेकिन इससे भी कौन-सा किला फतेह होने वाला है ? क्या देश के आर्य समाजों में हर साल हजारों-लाखों शादियां होती हैं ? देश की जातिय-व्यवस्था में परिवर्तन तभी होगा,जबकि प्रति वर्ष लाखों शादियां अन्तरजातिय हों,लेकिन इस मामले में हमारे नेता लोग ठन-ठन गोपाल हैं,शून्य हैं,बिल्कुल अकर्मण्य हैं। जो उन्हें करना चाहिए,वह वे बिल्कुल नहीं करते। सबसे पहले नौकरियों से जातिय आरक्षण खत्म करना चाहिए। दूसरा,जातिय आधार पर चुनावी उम्मीदवार तय नहीं करना चाहिए। तीसरा,जातिय नाम या उपनाम रखनेवाले को चुनावी टिकिट नहीं देना चाहिए। चौथा,लोगों से आग्रह करना चाहिए कि वे जातिय उपनाम रखना बंद करें। पांचवां,किसी भी सरकारी कर्मचारी द्वारा जाति या उप-जातिसूचक नाम रखने पर प्रतिबंध होना चाहिए। छठा,संगठनों, धर्मशालाओं,अस्पतालों और मोहल्लों के जातिसूचक नाम बंद होने चाहिए। सातवां,सबसे बड़ा काम यह है कि मानसिक श्रम और शारीरिक श्रम का भेद मिटना चाहिए। कुर्सीतोड़ और कमरतोड़ कामों के मुआवजे में अधिक से अधिक १ और १० का अनुपात होना चाहिए। सदियों से चली आ रही इस रुढ़ि ने ही देश में ऊंची और नीची जातियों का भेदभाव खड़ा किया है। क्या सिर्फ़ ढाई लाख रु के लालच में ही अंतरजातिय विवाह हो जाएँगे ? हाँ,इनसे मदद जरुर हो जाएगी।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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