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प्रकृति संरचना में मानव का महत्व

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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प्रकृति और मानव स्पर्धा विशेष……..


‘प्रकृति संरचना में मानव का महत्व’ है,पर मानव से पहले प्रकृति की चर्चा-भारतीय पुराणों के अनुसार किवदंतियां हैं कि प्रकृति (सृष्टि)की रचना आदिकाल से पहले हमारे ईष्ट देवता ब्रह्मा,विष्णु,महेश जी ने की थी,जो किवदंती नहीं शत्-प्रतिशत सत्य है।
सभी देवों ने प्रकृति के सुचारु रूप से चालन के लिए जीव-जन्तुओं को भी रचा। ऐसा माना जाता है कि प्रकृति की रचना के समय देवताओं(ईश्वर)ने जीवों में मानव प्रजाति को शरीर और आत्मा के साथ-साथ विशेष रूप से सोचने-समझने के लिए मस्तिष्क में एक विशेष शक्ति भी दी। अनगिनत(शायद चौरासी लाख) प्रजातियों में प्रत्येक को दो भागों-नर और मादा में विभाजित किया गया। शायद ऐसा प्रकृति को निरन्तर चलायमान रखने के लिए किया गया होगा।
प्रकृति संरचना में ईश्वर ने पंचतत्व बनाए-धरती,आकाश,जल,हवा और अग्नि। इन उपरोक्त पंचतत्व के अलावा प्रत्येक जीव और जन्तु को एक तयशुदा अवधि तक के लिए ही रचा। ऐसा माना-समझा जाता है कि एक निश्चित अवधि में एक पल के अंतर के बिना निश्चित स्थान में सम्बन्धित जीव-जन्तु का अस्तित्व स्वयं ही नष्ट हो जाएगा,परन्तु प्रकृति सदैव ही निरन्तर-चलायमान रहेंगी।
यहां प्रकृति से संम्बन्धित भारतीय पुराणों में रचित कुछ वक्तव्यों को रखना चाहूंगा,क्योंकि भारतीय होने के नाते गर्व है कि जिन बातों को मेरे देश भारतवर्ष के पुराणों में,शास्त्रों में,भारत के ऋषियों-मुनियों ने युग-युगांतर पहले ही वर्णित कर दिया था,वो बातें आज के इस वैज्ञानिक युग में सत्य साबित हो रहींं हैं।
ऊँ(ओम)-
शब्द का उच्चारण प्रत्येक भारतीय आरती में आता है। युगों-युगों से ऊँ(ॐ)शब्द भारतीय पुराण रचनाओं में प्रमुख रूप से रहता है, जबकि विश्व की सर्वोच्च प्रतिष्ठित अमेरिका की वैज्ञानिक संस्था ‘नासा’ ने अब इक्कीसवीं सदी में आविष्कारों से यह जानकारी निकाली कि सूर्य के कम्पन से ऊँ शब्द की ध्वनि ऊद्देलित होती है।
जगत-
भारतीय भाषा में दुनिया को युगों-युगों पहले ‘जगत’ कहा गया। जगत शब्द की संधि विच्छेद की जाए तो,जग + गत बनती है। अर्थात,जग गतिमान है। इस बात की वैश्विक जानकारी विदेशों में सदियों बाद हुई।भूगोल-भूगोल का भी संधि विच्छेद करें तो,भू+गोल।अर्थात,पृथ्वी गोल है। हिन्दी भाषा में पृथ्वी को शब्द-वर्ण रचना के समय से ही भूगोल कहा गया है,परन्तु दुनिया,संसार को यह जानकारी बहुत बाद में हुई कि पृथ्वी गोल है।
ऐसा ही बहुत कुछ है,जिससे सृष्टि की रचना में भारतवर्ष की विशिष्टता को समझ सकते हैं। बात बस ज्ञान की है।
अब मानव की बात तो ये ही ऋषि-मुनि बने,ये ही बने दानव भी। प्रकृति के रचनाकार तो,हैं असल में मानव ही। जी हाँ,जब-जब प्रकृति और मानव की चर्चा एकसाथ होगी,तब-तब रचनाकार को वर्णन में असमंजस होगा कि अपनी ही बनाई अमूल्य धरोहर को ये समाप्त करने पर तुला है। कैसे ???

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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