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पहचान

डॉ.सरला सिंह`स्निग्धा`
दिल्ली
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लोग चेहरे पे नया चेहरा
सजा लेते हैं,
हम समझते हैं कि लोग
बड़े अच्छे हैं।

वक्त-ए-आँधी उड़ा देती है
मुखौटे उनके,
हम तो खड़े बस देखते ही
रह जाते हैं।

जनाब पहचानने की ही
जरा कमजोरी है,
वरना हम भी यूँ सब पे
यकीं नहीं करते।

जमाना इतना बदल गया
यकीं नही होता,
अब तो रिश्तों में भी कोई
ठहराव नहीं।

गैर तो गैर हैं गैर रहेंगे
अदावत कैसी ?
अब तो अपनों पे भरोसा भी
फिसलता देखो।

लोग अपने हैं या पराये
ये भला जानें कैसे ?
लोग चेहरे पे चेहरा लगा के
चलते हैं राही।

हे प्रभु अबकी जरा समझ लेना
ना करना जल्दी,
भेजना ना इंसान को इंसानियत
के बिना यहाँ।

कम पड़ जाए इंसानियत गर
तेरे खजाने में,
इस इंसान को सागर का कोई
जीव ही बना देना।

कितना बदला है अब तो इन्सान
आकर धरती पर,
भटकता रहे ता-उम्र वहीं वो सदा
उसे मानव ना बनाना॥

परिचय-आप वर्तमान में वरिष्ठ अध्यापिका (हिन्दी) के तौर पर राजकीय उच्च मा.विद्यालय दिल्ली में कार्यरत हैं। डॉ.सरला सिंह का जन्म सुल्तानपुर (उ.प्र.) में ४अप्रैल को हुआ है पर कर्मस्थान दिल्ली स्थित मयूर विहार है। इलाहबाद बोर्ड से मैट्रिक और इंटर मीडिएट करने के बाद आपने बीए.,एमए.(हिन्दी-इलाहाबाद विवि), बीएड (पूर्वांचल विवि, उ.प्र.) और पीएचडी भी की है। २२ वर्ष से शिक्षण कार्य करने वाली डॉ. सिंह लेखन कार्य में लगभग १ वर्ष से ही हैं,पर २ पुस्तकें प्रकाशित हो गई हैं। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। कविता (छन्द मुक्त ),कहानी,संस्मरण लेख आदि विधा में सक्रिय होने से देशभर के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख व कहानियां प्रकाशित होती हैं। काव्य संग्रह (जीवन-पथ),२ सांझा काव्य संग्रह(काव्य-कलश एवं नव काव्यांजलि) आदि प्रकाशित है।महिला गौरव सम्मान,समाज गौरव सम्मान,काव्य सागर सम्मान,नए पल्लव रत्न सम्मान,साहित्य तुलसी सम्मान सहित अनुराधा प्रकाशन(दिल्ली) द्वारा भी आप ‘साहित्य सम्मान’ से सम्मानित की जा चुकी हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-समाज की विसंगतियों को दूर करना है।

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