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आप ऐसे तो ना थे…

शिवनाथ सिंह
लखनऊ(उत्तर प्रदेश)
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जिंदगी में अनेक पल ऐसे आते हैं,जब कोई अपना न होते हुए भी अपना जैसा ही लगता है और जिसे हम अपना समझते रहते हैं,वह विषम परिस्थितियों के आने पर अपना सिद्ध नहीं हो पाता और फिर,दिल बहुत गहराई तक टुकड़े-टुकड़े होकर रह जाता है। ‘श्रृंखला’ ऐसी ही परिस्थिति की भुक्तभोगी थी ।
श्रृंंखला जब अपनी ससुराल के सदस्योंं के बीच नई-नवेली दुल्हन के रूप में आई थी,तो एक- एक करके सभी रस्में बड़े विधि-विधान के साथ पूरी की गई थीं और श्रृंखला को अधिकारिक तौर पर घर की बहू का दर्जा प्राप्त हो गया था। समय बीतते-बीतते श्रृंखला को घर के सभी सदस्य अपने से लगने लगे थे,उनमें भी विशेष रूप से उसकी अपनी सासू माँ। सासू माँ उसे ‘बेटा-बेटा’ कहते न थकती थीं तो श्रृंखला भी अपनी ओर से कोई कमी न रहने देती थी। रही देवर और ननंद की बात,तो वे भी यथासंभव उसका सम्मान करते थे।
छुट्टियाँ समाप्त होते ही ‘देवास’ शीघ्र आने का वादा करके अकेले ही अपनी नौकरी वाले शहर में चले गए थे। दूर रहते हुए भी देवास की नियमित रूप से बातें होती थीं लेकिन उन्हें श्रृंखला के पास पहुँचने का अवसर न मिल पाता था। समय यूँ ही बीतता जा रहा था कि एक बार श्रृंखला की जिद के आगे उनकी कुछ भी न चली और वे श्रृंखला को साथ लेकर अपने शहर आ गए थे।
श्रृंखला नियम-संयम वाली महिला थी,अत: घर-गृहस्थी सुचारू रूप से चलने लगी थी लेकिन साथ ही मुख्य कठिनाई यह आ रही थी कि देवास अक्सर ही देर से घर लौटते थे। श्रृंखला कुछ कहती तो वे कुछ न कुछ बहाना बना देते तथा उसे खुश रखने के लिए इधर-उधर के प्रलोभनों से सराबोर कर देते। दिन खुशी-खुशी गुजरते जा रहे थे कि ‘क्रांति’ एक खलनायिका के रूप में उन दोनों के बीच आकर खड़ी हो गई और जीवन की गाड़ी हिचकोले खाकर चलने लगी।
हुआ कुछ ये था कि क्रांति मकान मालिक के घर में दैनिक कार्यों के लिए तैनात थी,सो श्रृंखला ने उसी को अपने यहाँ भी काम पर लगा लिया था लेकिन आगे चलकर उसी क्रांति ने श्रृंखला की हरी-भरी गृहस्थी में क्रांति-सी ला दी थी। क्रांति के कारण देवास का मन भटक रहा था,फलस्वरूप देवास के व्यवहार में स्पष्ट रूप से परिवर्तन भी दिखाई देने लगा था। स्थिति ऐसी हो चुकी थी कि देवास अक्सर श्रृंखला के संज्ञान में लाए बिना ही क्रांति के लिए कोई न कोई उपहार ले आते। श्रृंखला देखती तो उस पर निराशा हावी हो जाती और उसका दिल टुकड़े-टुकड़े होकर रह जाता। श्रृंखला क्रांति को हटाने के यत्न करती तो देवास ‘कोई और प्रबन्ध कैसे होगा!’ जैसा यक्ष प्रश्न उसके सामने खड़ा कर देते और बात टल जाती। जब स्थिति असह्य लगने लगी तो श्रृंखला ने स्वयं ही काम करने का मन बना लिया और क्रांति को चलता कर दिया,लेकिन क्रांति श्रृंखला के परिवार में क्रांति के बीज तो बो ही चुकी थी। देवास अजीब- सी दुविधा में फँसे हुए थे और उनके मन की व्यग्रता यदा-कदा उजागर हो भी जाती थी। श्रृंखला नहीं चाहती थी कि उसकी गृहस्थी किसी दूसरी औरत के कारण बिखर जाए,सो उसने अपने व्यवहार में उग्रता लाने की तुलना में प्रेम-भाव को महत्व देना अधिक श्रेयष्कर समझा और उसने विनम्रता की चादर कसकर ओढ़ ली।
श्रृंखला यदा-कदा देवास के सीने से लग जाती और फिर उन्हें अपने बाहुपाश में कसते हुए कह उठती ‘मेरे देव,आप ऐसे तो ना थे…।’

परिचय-शिवनाथ सिंह की जन्म तारीख १० जनवरी १९४७ एवं जन्म स्थान धामपुर(बिजनौर,उत्तर प्रदेश )है। प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री सिंह की शिक्षा सिविल अभियांत्रिकी है और विद्युत विभाग से २००५ में अधिशाषी अभियन्ता पद से सेवानिवृत्त हैं। रुचि-साहित्य लेखन,कला एवं अध्यात्म में है। इनकी प्रकाशित पुस्तकों में कविता संग्रह(२०१४) सहित लेख,लघुकथा एवं कहानी संग्रह(२०१८)व मुक्तक संग्रह (२०२०) प्रमुख हैं। है। आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विविध साहित्य के रुप में प्रकाशित हैं। लेखनी की वजह से विभिन्न संस्थाओं से अनेक सम्मान-पत्र एवं प्रशस्ति-पत्र प्राप्त हैं।

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