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गर रात नहीं हो इस जग में

ओम अग्रवाल ‘बबुआ’
मुंबई(महाराष्ट्र)
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कल रात अंधेरा घना था लेकिन,भोर की आशा बाकी थी।
जगे हुए इन नयनों में भी,कुछ जिज्ञासा बाकी थी॥

अंधियारे जब सृजित हुए तो,कुछ तो अर्थ रहे होंगे,
या कुदरत की झोली में भी,कुछ पल व्यर्थ रहे होंगे।
आखिर मैंने पूछा प्रभुवर,एक बात बतलाओ तो,
काले गहन अंधेरों का कुछ,राज जरा समझाओ तो।

क्यूँ निर्माण किया तम का क्यूँ,तुमने रात बनाई थी,
दिन-दिनकर की भोर भंगिमा,तुमको रास न आई थी।
कहा प्रभु ने सत्य कहूँ तो,मेरी भी मजबूरी है,
जितना जीवन होता है,उतनी ही मौत जरूरी है।
गंगा को पावन कौन कहे गर,पाप नहीं हो इस जग में,
प्रात किसे फिर भाएगी,गर रात नहीं हो इस जग में।

भला भला है तब तक जब तक,अस्तित्व बुरे का होता है,
और रुदन से मान सदा ही,मुस्कानों का होता है।
जल को जीवन कैसे कहते,कण्ठ प्यास गर न होती,
किसकी करता कौन प्रतीक्षा,आस अगर इक न होती।

गहन अंधेरों से ही प्रियवर,उजियारों का मान हुआ,
और निशा के कारण ही तो,सूरज का सम्मान हुआ॥

परिचय-ओमप्रकाश अग्रवाल का साहित्यिक उपनाम ‘बबुआ’ है।आप लगभग सभी विधाओं (गीत, ग़ज़ल, दोहा, चौपाई, छंद आदि) में लिखते हैं,परन्तु काव्य सृजन के साहित्यिक व्याकरण की न कभी औपचारिक शिक्षा ली,न ही मात्रा विधान आदि का तकनीकी ज्ञान है।आप वर्तमान में मुंबई में स्थाई रूप से सपरिवार निवासरत हैं ,पर बैंगलोर में भी निवास है। आप संस्कार,परम्परा और मानवीय मूल्यों के प्रति सजग व आस्थावान तथा देश-धरा से अपने प्राणों से ज्यादा प्यार है। आपका मूल तो राजस्थान का झूंझनू जिला और मारवाड़ी वैश्य है,परन्तु लगभग ७० वर्ष पूर्व परिवार उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में आकर बस गया था। आपका जन्म १ जुलाई को १९६२ में प्रतापगढ़ में और शिक्षा दीक्षा-बी.कॉम.भी वहीं हुई है। आप ४० वर्ष से सतत लिख रहे हैं।काव्य आपका शौक है,पेशा नहीं,इसलिए यदा-कदा ही कवि मित्रों के विशेष अनुरोध पर मंचों पर जाते हैं। लगभग २००० से अधिक रचनाएं आपने लिखी होंगी,जिसमें से लगभग ७०० का शीघ्र ही पाँच खण्डों मे प्रकाशन होगा। स्थानीय स्तर पर आप कई बार सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे हैं। आप आजीविका की दृष्टि से बैंगलोर की निजी बड़ी कम्पनी में विपणन प्रबंधक (वरिष्ठ) के पद पर कार्यरत हैं। कर्नाटक राज्य के बैंगलोर निवासी श्री अग्रवाल की रचनाएं प्रायः पत्र-पत्रिकाओं और काव्य पुस्तकों में प्रकाशित होती रहती हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जन चेतना है।

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