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अपना शीश झुकाता हूँ

ओम अग्रवाल ‘बबुआ’
मुंबई(महाराष्ट्र)
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जिसने अपनी कोख में मेरी,काया का निर्माण किया,
जिसने अपनी साँसों को ही,मेरे तन का प्राण किया।
उस जननी के पदपंकज पर,इतना नेह जताता हूँ,
अन्तर्मन से मनभावों के,श्रृद्धा सुमन चढ़ाता हूँ॥

और तात के उपकारों का,कितना मैं गुणगान करूँ,
संस्कार के पाठ पढ़ाए,उन पर मैं अभिमान करूँ।
जिन गुरुवर के कृपाभाव से,जीवन के सुख पाता हूँ,
उन गुरुवर के श्रीचरणों में,अपना शीश झुकाता हूँ॥

परमपिता परमेश्वर ने ये,सारे पुष्प खिलाए हैं,
सदा उन्हीं की पदरज के तो,हमने तिलक लगाए हैं।
अवनि और अम्बर केे संग सूरज-चाँद सितारों का,
मैं कितना अभिमान करूँ इन पावन पुण्य नजारों का॥

कानन सिंधु सुधा तरुवर संग,सकल चराचर प्यारे हैं,
अरि-मित्र हमारे प्रिय परिजन,इन आँखों के तारे हैं।
आओ मिलकर हम सब इनका,जी भरकर आभार करें,
नमन भोर का करूँ आपका,प्रियवरश्री स्वीकार करें॥

परिचय-ओमप्रकाश अग्रवाल का साहित्यिक उपनाम ‘बबुआ’ है।आप लगभग सभी विधाओं (गीत, ग़ज़ल, दोहा, चौपाई, छंद आदि) में लिखते हैं,परन्तु काव्य सृजन के साहित्यिक व्याकरण की न कभी औपचारिक शिक्षा ली,न ही मात्रा विधान आदि का तकनीकी ज्ञान है।आप वर्तमान में मुंबई में स्थाई रूप से सपरिवार निवासरत हैं ,पर बैंगलोर  में भी  निवास है। आप संस्कार,परम्परा और मानवीय मूल्यों के प्रति सजग व आस्थावान तथा देश-धरा से अपने प्राणों से ज्यादा प्यार है। आपका मूल तो राजस्थान का झूंझनू जिला और मारवाड़ी वैश्य है,परन्तु लगभग ७० वर्ष पूर्व परिवार उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में आकर बस गया था। आपका जन्म १ जुलाई को १९६२ में प्रतापगढ़ में और शिक्षा दीक्षा-बी.कॉम.भी वहीं हुई है। आप ४० वर्ष से सतत लिख रहे हैं।काव्य आपका शौक है,पेशा नहीं,इसलिए यदा-कदा ही कवि मित्रों के विशेष अनुरोध पर मंचों पर जाते हैं। लगभग २००० से अधिक रचनाएं आपने लिखी होंगी,जिसमें से लगभग ७०० का शीघ्र ही पाँच खण्डों मे प्रकाशन होगा। स्थानीय स्तर पर आप कई बार सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे हैं। आप आजीविका की दृष्टि से बैंगलोर की निजी बड़ी कम्पनी में विपणन प्रबंधक (वरिष्ठ) के पद पर कार्यरत हैं। कर्नाटक राज्य के बैंगलोर निवासी श्री  अग्रवाल की रचनाएं प्रायः पत्र-पत्रिकाओं और काव्य पुस्तकों में  प्रकाशित होती रहती हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जन चेतना है।

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