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आओ फिर से दीप जलाएँ

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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आओ फिर से दीप जलाएँ,
घी से रुई की बाती बनाएँ
दीपक में फिर उसे लगाएँ,
सिंदूर-रोली, चंदन की थाल सजाएँ।

दीपावली की बात बताएँ,
क्यों, कैसे सबको समझाएँ
लंका दहन कर राम हैं आए,
रामायण-दोहे, चौपाई गाएँ।

दीप जलाएँ, रौशनी फैलाएँ,
इस उत्सव पर हर्ष दिखाएँ
फल-मिठाई का भोग लगाएँ,
धन्वंतरि जी को खूब मनाएँ।

मूर्ति लक्ष्मी-गणेश की लाएँ,
अपने घर-गाँव का लेप कराएँ
सभी दीवारों में रंग पुतवाएँ,
कई रंगों से खूब सजाएँ।

फुलझड़ी और पटाखे लाएँ,
पटाखे छोड़ें, फुलझड़ी जलाएँ
रंग-बिरंगी रौशनी फैलाएँ,
हर घर में हम दीप जलाएँ।

सिया-राम अब लौट हैं आएँ,
नाचें-गाएँ, खुशी मनाएँ
उत्सव में हम सब बंध जाएँ,
अंधकार में दीप जलाएँ।

अन्यायी को सबक सिखाएँ,
न्याय की खातिर शीश कटाएँ
समूल बुराइयाँ नष्ट कराएँ,
अच्छाई का बिगुल बजाएँ।

मर्यादा का पाठ पढ़ें-पढ़ाएँ,
पुरुषोत्तम खुद हम बन जाएँ
कुछ हम सीखें और सिखाएँ,
राम नाम का जाप कराएँ।

लक्ष्मण-भरत हम स्वयं बनें-बनाएँ,
हनुमान से तेवर-जोश दिखलाएँ
सीना चीर के खुद दिखलाएँ,
सनातन का परचम लहराएँ।

१४ बरस वनवास बिताए,
सिया-राम घर वापस आए
सबने पूड़ी-खीर बनाए,
सब संतों को भोग लगाएँ।

चलो अवध हम सब भी जाएँ,
मन्दिर राम का देखें-दिखाएँ
इस अवसर पर उत्सव पाएँ,
रामलला को गर्भ गृह में पाएँ।

चलो अवध को खूब सजाएँ,
रघुनंदन से मिलकर आएँ
उत्सव को हम दिव्य मनाएँ,
थाल पीटकर, दीप जलाएँ।

आओ फिर से दीप जलाएँ,
सब रूठों को चलो मनाएँ
अंधकार में ज्योति जलाएँ,
दुनिया जगमग दीप जलाएँ।

राम वनवास के सारे दुर्लभ भाव बताएँ,
राम जन्मभूमि जाकर अपना शीश नवाएँ
अवध की वो रौनक लौटाएँ,
घी के सौ-सौ दीप जलाएँ।

आओ फिर से दीप जलाएँ,
अभी पुण्य का लाभ कमाएँ।
दशहरा-दीपावली दोनों अबके वहीं मनाएँ,
राम लला स्वयं देखें, हम क्या खोए; क्या पाएँ ?

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”