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जिंदगी के नए पन्ने

खुशी सिंह
मुंबई(महाराष्ट्र)
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मैं रुकी नहीं,
थम सी गई हूँ
अपने सपनों से,
सहम सी गई हूँ।
डर लगता है,
आगे बढ़ने से
फिर दो कदम
पीछे हटने से।
रास्ते के फूल,
काँटे बन गए हैं
अब हम बच्चे नहीं,
बड़े हो गए हैं॥

हमारी जिंदगी की किताब के,
नए पन्ने खुलने जा रहे हैं
मेहनत की स्याही से,
कुछ भरने जा रहे हैं।
रास्ते के काँटों को चुभने दो,
दो कदम पीछे मुड़ने दो
सपनों की उड़ान तो,
हम फिर भी भरेंगे।
आँखों में अब नींद,
सपनों संग जगने दो।
बंद आँखों के सपने,
हकीकत लगने लगे हैं
अब हम बच्चे नहीं,
बड़े हो गए हैं॥