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ये कोई बड़ा-अड़ा दिन नहीं होता…

कमल किशोर दुबे कमल 
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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‘बड़े दिन की छुट्टी’ स्पर्धा  विशेष………


आज हमारे पड़ौसी खबरीलाल जी सुबह-सुबह हमारे घर आये। आते ही बोले-“कलमकार,बड़ा दिन मुबारक हो!”
मैंने चौंकते हुये पूछा- कैसा बड़ा दिन ? कौनसा बड़ा दिन ?? खबरीलाल तुम होश में तो हो ?
इस पर खबरीलाल कुछ अकड़ते हुए बोले-कलमकार,लगता है आप ही होश में नहीं हो ?
“अरे! आज बड़े दिन की छुट्टी है!”
मैंने कहा-“भाई,आज साल का सबसे छोटा दिन,याने २५ दिसम्बर है,जब सूर्योदय से सूर्यास्त तक पूरा दिन मात्र दस घंटे पैंतीस मिनट का होता है! और…तुम कहते हो…बड़ा दिन ? आज की रात वर्ष भर की सबसे बड़ी रात होती है ?”
अब खबरीलाल झेंपते हुए बोले-“गुरुजी,यह क्रिसमस डे है! ईसाई लोग इसे बड़ा दिन कहते हैं!!”
“खबरीलाल,ये कोई बड़ा-अड़ा दिन नहीं होता!
यह बात वैज्ञानिक रूप से सत्य है! कम से कम भारतीय प्रायद्वीप में तो नहीं,यह मैं पूरे होशो-हवाश में दावे के साथ कह सकता हूँ।”
खबरीलाल को अपने पैरों के नीचे से ज़मीन खिसकती नज़र आयी। अपनी झेंप मिटाते हुए बोले-“फिर ये अँग्रेज लोग क्यों कहते हैं ?”
मैंने कहा-“भाई,ये बात अठारहवीं सदी की है,जब हमारे देश पर ब्रिटिश हुकूमत करते थे। उस समय भारत की अधिकतम जनता अनपढ़ होती थी,जिन्हें क्रिसमस और ईसा मसीह की कोई जानकारी नहीं होती थी। अतः अँग्रेज अपना त्यौहार मनाने के लिए इसे बड़ा दिन और इस दिन के अवकाश को ‘बड़े दिन की छुट्टी’ कहा करते थे। और…हमारे अज्ञानी देशवासी जो उनके मुलाज़िम होते थे,उनकी हर बात पर विश्वास कर लेते थे। आज यह बात वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुकी है कि,पृथ्वी पर सबसे बड़ा दिन २१ जून को (लीप वर्ष में २२ जून) और सबसे छोटा दिन २२ दिसम्बर को होता है।”
अब,खबरीलाल को अपनी गलती का अहसास हो गया। वे अपने दोनों कान पकड़ते हुए बोले-“कलमकार,आज से आप मेरे गुरु हैं।”
अब,मैं इसे ‘बड़े दिन की छुट्टी’ कदापि नहीं कहूँगा!!”
और…मैंने भी सच्चे गुरु की तरह घुट्टी पिलाते हुए कहा-“हाँ, हमारे देश को मुगलों से आज़ाद कराने के लिये आज से ३०० वर्ष पूर्व सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी ने २० से २७ दिसम्बर १७०४ के बीच अपने चार पुत्रों साहिबज़ादा अजीत सिंह,फतेह सिंह,ज़ोरावर सिंह और जुझार सिंह की शहादत दे दी थी। अतः दिसम्बर माह का यह अंतिम सप्ताह हम भारतीयों के लिए खुशी नहीं,वरन शोक मनाने का सप्ताह है,लेकिन हमारे तथाकथित नेताओं और इतिहासकारों ने इसकी घोर उपेक्षा ही नहीं की,वरन अँग्रेज भक्त बनकर पाश्चात्य संस्कृति के रंग में ढलते चले गए। मेरे विचार में गुरु गोविन्द सिंह जी से बड़ा कोई सांताक्लॉज भी नहीं हो सकता,जिन्होंने अपने चारों पुत्रों को अपने मातृभूमि एवं राष्ट्रधर्म पर न्यौछावर कर दिया।”
अब,खबरीलाल अवाक होकर विस्फारित नेत्रों से एकटक मेरी ओर देख रहे थे।

परिचय-कमल किशोर दुबे का साहित्यिक उपनाम-कमलहैl आपकी जन्मतारीख २६ दिसम्बर १९५८ और जन्म स्थान- पिपरिया(जिला-होशंगाबाद,म.प्र.) हैl वर्तमान में भोपाल स्थित होशंगाबाद रोड पर निवासरत हैंl मध्यप्रदेश निवासी श्री दुबे ने बी.एस-सी.सहित एल.एल.बी.,बी.जे.एम.सी. और एम.सी.जे.(पत्रकारिता)की उपाधि प्राप्त की हैl इनका कार्यक्षेत्र-भारतीय रेल में वरिष्ठ जन सम्पर्क अधिकारी (सेवानिवृत्त) का रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आपके द्वारा व्यक्तित्व विकास हेतु प्रेरणा एवं साहित्य लेखन जारी हैl लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल, व्यंग्य लेख तथा कहानी है। प्रकाशन के निमित्त-पंखुड़ियाँ गुलाब की(काव्य संग्रह-२००४),दोषी कौन (कहानी संग्रह-२००४),मुहब्बत का चिराग़ (ग़ज़ल संग्रह-२०१४)सहित गधा यहीं का(व्यंग्य संग्रह-२०१७) किताबें आ चुकी हैं तो श्रीहरि सरल गीता( श्रीमद्भगवद्गीता का दोहे-चौपाई में हिन्दी काव्यानुवाद प्रकाशन हेतु तैयार हैl आपकी रचनाओं प्रकाशन विभिन्न दैनिक समाचार पत्र-पत्रिकाओं में हुआ है। आपको प्राप्त सम्मान में सुधा वाणी सम्मान,साहित्य मनीषी सम्मान,पवैया पुरस्कार तथा कादम्बिनी साहित्य अलंकरण प्रमुख हैंl विशेष उपलब्धि-मध्य प्रदेश शासन की सुप्रसिद्ध `लाड़ली लक्ष्मी` योजना के विज्ञापन-वर्ष 2008 में बेटियाँ कविता का उपयोग,पश्चिम रेल विभाग की पत्रिकाओं का सम्पादन एवं भोपाल के चर्चित कवि-२०१० में सम्मिलित होना हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैली भ्रांतियों,भ्रष्टाचार,सामाजिक विद्रूपताओं,विसंगतियों को उजागर करना तथा समाज में विकासोन्मुखी,सांस्कृतिक,राष्ट्रीयता की भावना की प्रेरणा और विकास करना है। आपकी लेखनी के लिए प्रेरणा पुंज-जन महाकवि गोपालदास `नीरज`,गायत्री परिवार के संस्थापक युगऋषि आचार्य श्रीराम शर्मा और जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज हैं। श्री दुबे की विशेषज्ञता-जनसम्पर्क,ग़ज़ल एवं व्यंग्य लेखन में है। रुचियाँ -साहित्य लेखन,पढ़ना-पढ़ाना,कवि सम्मेलनों-काव्य गोष्ठियों में भागीदारी है।

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