एन.एल.एम. त्रिपाठी ‘पीताम्बर’
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)
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‘बड़े दिन की छुट्टी’ स्पर्धा विशेष………
सर्द हवाएं ठिठुरन गलन बताये,
हर इंसान चाहता
सूरज की किरणें,
कहीं से आये।
हर घने कोहरे की चादर,
दुनिया में जिंदगी का
नया रंग दिखाए।
किसान उम्मीदों में गुनगुनाए,
मौसम की अंगड़ाई
फसलों की सेहत बनाये।
व्यापार हो गया हैं मंदा,
चौपट हो रहा हैं धंधा
मौसम के इस हालात में,
कैसे मुस्कुराए।
सुबह नई आशा,
हर शाम निराशा
जवाँ दिलों में नए जोश,
की कली नित खिलाए।
बुजुर्ग बेहाल,
ठण्ड से बुरा हाल
घड़ी पल प्रहर,
ईश्वर की गुहार लगाए।
मौसम के खौफ से,
बेखबर बच्चे
सान्ता के तोहफों की,
धुन लगाए।
जिंदगी के
क्या मौसम,
कभी हँसाए
कभी सताए।
मौसम के इस कहर,
में भी गाँव अलग
शहर अलग,
अपनी-अपनी धुन सुनाए।
गावँ का गरीब,
झोंपड़ियों में फ़टी कम्बल में,
कश्मकश-ए शहरों के फुटपाथ पर
थके बेहाल मजदूर,
बेहाल अलाव की आस,
की गर्मी में
रात बिठाए।
मौसम की मार से’
सबका बुरा हाल
मौसम ही अपनी धुन में,
जहाँ में जिंदगी के
कई रूप दिखाए।
यारों जिंदगी में,
आते-जाते मौसम भी
एक आईना जिंदगी की,
सूरत जिंदगी को दिखाए।
दिन के बढ़ने का आलम आ गया,
रात सिकुड़ने लगी
हर सुबह घास पर,
चमकती ओस की बूंदें
जिंदगी का मौसम,
बदलने लगी।
जीजस का पहला कदम,
कायनात में ईश के स्वर
साम्राज्य का मतलब,
गड़ने लगी।
खट्टी-मीठी यादों के,
सफर की जिंदगी जहाँ में
अपने सुहाने सफर की,
याद संजोने लगी।
नए उत्साह-उमंग से,
जिंदगी के एक नए सफर का
मुकाम-मंज़िल,
को सजने और
संवरने लगी।
जहाँ में कहीं,
अवकाश का जज्बा
जूनून तो कही ज़मीं,
आसमा ही सुकूँ था।
अवकाश में,
दुनिया के लोग
आकाश में उड़ते,
अरमानों के पंखों के परवाज़
कुछ लोग ऐसे भी,
मौसम की जिंदगी में
मौसम नहीं रास।
उनकी चाहत जिंदगी में,
ना हो कभी मौसम
जैसा उतार-चढ़ाव,
चाहत इतनी जिंदगी के
दिन चार जिंदगी के,
मौसम चार
इंसानी जज्बे-जज्बातों,
की खुशियों के
हो चमन बहार।
ऐसा कब होता है कि,
जहाँ में जिंदगी
और मौसम एक जैसा,
हो जो हर हाल में
चैन-सुकून खुशियाँ।
बख़्शे मौसम और जिंदगी,
दोनों जहाँ में जिंदगी का
इंतेहा इम्तेहान लेती है,
जो जीत गया उसे
सिकंदर बना देती है,
जो हार गया उसे
बंदर बना देती है।
दांत किटकिटाने और,
तोहमत का हथियार देती है
सर्द मौसम में,
कहीं घोषित अवकाश
खुशियों की सौगात।
धीरे-धीरे अवसान होते,
साल की यादों की
तरंग-तरानों में,
झूमने-नाचने का पैगाम
नए साल के खैर मकदम
का सुरुर के गुरूर का,
जश्न का आगाज़ अंदाज़।
जमाने में बहुत ऐसे,
भी लोग जिन्हें मौसम
ने दे दिया अघोषित अवकाश,
ना काम ना दाम
ना रोटी ना दाल।
भूख से बिलबिलाते बच्चों
को क्या दें जबाब,
उनके ही सामने
उनका दोस्त
‘जिंगल बेल,जिंगम बेल
जिंगल आल द वैल’
का केक काटता।
नए साल,
पुराने साल के जश्न के
किस्से कहानियाँ सुनाता,
उनके लिये तो हर सुबह
नया साल,
कब खत्म होगा उनके
जिल्लत-जलालत का,
लम्हा-लम्हा साल।
कब आएगी वह घड़ी!
लाएगी जिंदगी की चाहत
की फुलझड़ी,
मनाएं नया साल
जमीं-आकाश में,
हो इंसानियत की खुशियों
का तरण ताल
का अवसर अवकाश।
ना हो मौसम की मार,
पथराई आँखों को
है शिद्दत से दुनिया को,
यकीनन यकीन के
अवकाश का है इंतज़ार।
हर कली फूल बनकर,
मुस्कुराए भौरों का
हो हर सुबह,
दुनिया की खुशियों का गान।
कलरव करती नदिया,
बयां करे इंसानी दुनिया
का गुणगान हर सुबह,
सूरज मुस्काए तो
झूमे जहाँ,
अपनी हस्ती की मस्ती में
तो आया नए वक्त का,
लिये पैगाम नया साल।
हैप्पी न्यू ईयर की हो,
गूँज ना हो बेचारा
ना हो बेचारा,
कोइ ना हो परेशान बेहाल
चहुँओर खुशियों की,
अवसर उपलब्धि का
हो अवकाश नया साल॥
परिचय–एन.एल.एम. त्रिपाठी का पूरा नाम नंदलाल मणी त्रिपाठी एवं साहित्यिक उपनाम पीताम्बर है। इनकी जन्मतिथि १० जनवरी १९६२ एवं जन्म स्थान-गोरखपुर है। आपका वर्तमान और स्थाई निवास गोरखपुर(उत्तर प्रदेश) में ही है। हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री त्रिपाठी की पूर्ण शिक्षा-परास्नातक हैl कार्यक्षेत्र-प्राचार्य(सरकारी बीमा प्रशिक्षण संस्थान) है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त युवा संवर्धन,बेटी बचाओ आंदोलन,महिला सशक्तिकरण विकलांग और अक्षम लोगों के लिए प्रभावी परिणाम परक सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,नाटक,उपन्यास और कहानी है। प्रकाशन में आपके खाते में-अधूरा इंसान (उपन्यास),उड़ान का पक्षी,रिश्ते जीवन के(काव्य संग्रह)है तो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-भारतीय धर्म दर्शन अध्ययन है। लेखनी का उद्देश्य-समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-पूज्य माता-पिता,दादा और पूज्य डॉ. हरिवंशराय बच्चन हैं। विशेषज्ञता-सभी विषयों में स्नातकोत्तर तक शिक्षा दे सकने की क्षमता है।