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सूली चढ़े दूत बन प्यार-अमन के

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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‘बड़े दिन की छुट्टी’ स्पर्धा  विशेष………


बड़े दिन की छुट्टियाँ,
साल का अवसान है
नववर्ष का शुभ आगमन है,
ठण्ड का पुरजोर आगम
बाँछें खिली गर्म कपड़ों कीl
किलकारियाँ दे रहे मफलर,दास्ताने,
समाने को समुद्यत पैरों में
गर्म मौजे बेधड़क,
रजाईयाँ कम्बल सरीखे गर्म गद्दे सभी
उल्लसित प्रमुदित हृदय स्वयं के दिन
फिरनेl
ठिठुरते हाड़ को खुद में समाने,
ऊनी शालों,स्वेटरों से लबालब
दुकानें नवरंगी चादरों से पटे बाजा़र सारे,
गर्म सूटों की जवानी पुनः लौटी ठंड में
गर्म जूतों से भरी सारी दुकानेंl
जैकेटों की आ पड़ी भरमार-सी,
पर्दों से लदी घर की किबारी-खिड़कियाँ
ऊनी धागों और काँटों से सजे हाथों,
सिहरन चढ़े शिथिलता के ऊफान पर
हिमाच्छादित बर्फ की बिछी सफेद चादरेंl
ठंड के आगोश में,
मानो सिमटी सारी धरा
स्कूल जाना है कठिन इस भयंकर ठंड में,
पठन-पाठन है जटिल छात्र का ठंड में
इसलिए ही `बड़े दिन` की ये छुट्टियाँ,
ठिठुरती इस ठंड की त्रासद समां।
पर,बच्चों में खुशी चारों तरफ है इस कदर,
बड़े दिन की छुट्टियाँ जो आ मिली
ठंड से आहत ठिठुरते छात्र और
शिक्षकों को मिली राहतेंl
वर्षान्त के बीते लम्हों के तराने,
नए साल के स्वागत में पड़े
नये अभिलाष के मधुरिमा को गुनगुनाने,
उन्मुक्त मन ये बालपन पिकनिक मनानेl
युवा हो या वृद्धजन नारी-पुरुष,
उत्फुल्ल उत्साहित सभी बड़े दिन की छुट्टियों में
छिपे खुद के बिस्तरों में,
मेरी क्रिसमस त्यौहार से हो जगमगा
शान्ति खुशियाँ मुस्कान बन क्रिसमस ट्री सजे,
शान्ता क्लाज बन बच्चे सयाने
अमन के पैगाम देते विश्व को,
रंग-बिरंगे केक के बच्चे दीवानेl
मूँगफलियों से पटे ये किनारे सड़क के,
तिलकूटों की विविधता से सजती दुकानें
सूर्य की तपती धूप के लाले पड़े,
स्कूल और कॉलेज के कपाट पर ताले पड़ेl
बड़े दिन की छुट्टियाँ मुस्कान बन सबके बदन,
कँपकपाती ठंड से आकुल सभी रक्षार्थ मन
स्नान से दूरी बनाना है सुलभ,
अति ठंड का बहाना बनाना है सुलभ
भाजियों का कुरकुराना आनंदकर,
चिपककर सोना सुहाना हमसफर
गर्म दूध का बोलबाला चरम पर,
लिट्टियों के साथ चोखा हर ठाँव परl
बड़े दिन की छुट्टियाँ दरकार है,
बलिदान दिन अट्ठाईस दिसम्बर खास है
गुरु गोविन्द ने दी पूत दो कुर्बानियाँ,
भारत वतन ए हिफ़ाजत शानियाँ,
जग मनाता यीशू दिवस क्रिसमस ट्री तले।
खिलाफ़त दासता अन्याय-अत्याचार के,
सूली चढ़े,पर दूत बन प्यार दुनिया अमन के
बड़े दिन की छुट्टियाँ होती इसी उपलक्ष्य में,
साथ ही शीताकुलित हाड़कम्पित ठंड में॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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