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जीवन दान

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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सर्दी का मौसम,अंधेरी रात…l डॉ.शान्ति राय हॉस्पिटल के पास पी. आई,टी कोलोनी,कंकड़बाग(पटना) में अपने परममित्र प्रो.डॉ संतोष कुमार सिंह के यहाँ मिलने गया था अपनी मोटर साईकल से। वहाँ से निकल कर अपने दूसरे मित्रवर राज मोहन मिश्र के यहाँ जाकर उनसे मिला। साढ़े नौ बज चुके थे,उन दोनों से वर्षों से नहीं मिला था। अतः अचानक मन में मिलने की इच्छा जगी और बिना किसी को घर में बताए मैं निकल गया था शेखपूरा से कंकड़बाग की ओर। मन प्रसन्न था दोनों मित्रों से मिलकर। उस समय बिहार में विधान चुनाव का माहौल था। मुझे भी ड्यूटी मिली हुई थी और ३-३ के मतदान शिविर में कल ही जाना था। प्रथम बार चुनावी कार्यभार से बिहार के माहौल में कुछ चिन्ता तो मन में थी ही।
ख़ैर,मित्र मिश्रा जी से विदा लेकर रात के करीब पौने १० बजे वहाँ से चला अपने निवास की ओर मोटर साईकल से। ये २७ दिसम्बर २०१० की बात है। ज्यादा ठंड थी,रात भी अंधेरी पर परिचित जगह थी मेरी पटना। अतः किसी भय या घटना की कोई शंका मन में न थी। निशंक भाव से उन्मुक्त राजेन्द्र नगर से पटना रेलवे स्टेशन की ओर जाने वाली लम्बी-चौड़ी मेन रोड से जा रहा था। इत्मीनान से बाईं ओर से मोटर साईकिल चलाता हुआ जा रहा था। राजेन्द्र नगर फ्लाई ओवर के नीचे से पहुँचा ही था कि,अचानक मोड़ बिन्दु पर एक द्रुतगति इनोवा कार जोरदार अति तेज गति से आकर मेरी मोटर साईकल में टक्कर मारती हुई निकल गई। गाड़ी में लगी,यह तो मुझे याद है, परन्तु उसके बाद क्या हुआ…मुझे कुछ मालूम नहीं था। मेरी गाड़ी ८ फुट दूर फिंकाई,मेरा चश्मा टूट गया था,हेलमेट गले में फँसा हुआ था, मोबाइल कहीं दूर पड़ा था,दोनों पैर के सैंडल कहीं दूर…। मुझे होश ही नहीं था। इनोवा वाला तो भाग चुका था। कुछ देर के बाद आस-पास के मजदूर-ठेला वाले लोग मुझे उठाकर सड़क के किनारे लाए। कुछ लोग चेहरे पर पानी दे रहे थे ,कुछ सीने पर हाथ डालकर श्वांस प्रक्रिया को जारी रखने की कोशिश कर रहे थे। सब अनज़ान…कुछ लोग मेरा चश्मा,चप्पल,मोबाइल उठाकर पास खड़े थे। पूर्णतः क्षत- विक्षत मोटर साईकल को २-३ लोग उठाकर एक तरफ ले गए थे। जब होश आया तो मैंने सबके बीच अपने को घिरा देखा। मन में अचानक भाव आया मैं फिर बच गया। लोग कह रहे थे भैया ,हम लोग तो समझे,फिर एक मौत हो गई यहाँ। परसों यहाँ कार की ठोकर से माँ-बेटा मारे गए थे। यह बहुत खतरनाक मोड़ है। आप बहुत भाग्यशाली हैं भैया जी! मेरे कंधे,सिर,बाएँ पैर,बायीं कोहनी में चोट लगी थी। गाड़ी पूर्णतः टूट गई थी,क्या करूँ,रात के ११ बज चुके थे। किसे फोन करूँ, इस समय कौन आएगा ? यहाँ से करीब २० किमी की दूरी पर मेरा निवास था। वहाँ किसी को मेरे कंकड़बाग आगमन की सूचना न थी। फिर मैंने बार-बार अपने मित्र राज मोहन मिश्रा को फोन लगाना शुरु किया। संयोग से बहुत प्रयास करने के बाद उनका फोन लगा और मैंने सारी घटना उनको बताई। वे १० मिनट में स्कूटर से अपनी पत्नी के साथ घटनास्थल पर पहुँचे। मोटर साईकल चलने लायक नहीं थी। अतः बहुत अनुनय-विनय करने के बाद एक ठेलावाला उसे ठेला पर ढाई सौ रुपए लेकर आधा कि. मीटर दूर मिश्रा जी के निवास स्थान पर छोड़ने के लिए तैयार हुआ। वे दम्पति मित्र भी बहुत चिन्तित थे। मुझे सुरक्षित देखकर वे कुछ संभल पाए। फिर उन्होंने मेरे घर पर फोन किया,तो वे लोग भी घबरा गए थे। निवास पर मेरे दोनों छोटे बच्चे,पत्नी और मेरे मधुमेह रोगी श्वसुर जी थे। मैंने उतनी रात में किसी को आने के लिए मना किया। मिश्रा जी ने मुझे अपने यहाँ चलने को कहा,परन्तु मैंने घर लौटने की इच्छा जाहिर की। एक ऑटो रिक्शा अकस्मात् पटना जंक्शन रेलवे स्टेशन की ओर जाती हुई नज़र आई,और मैं उनसे विदा लेकर रिक्शा में बैठ गया। ठेले पर मोटर साईकल चढ़वाकर मिश्रा दम्पति भी अपने निवास की ओर प्रस्थान कर गए। घायल था,दर्द था पर,बचने की खुशी में मैं उस समय सब भूल गया था। पटना रेलवे स्टेशन पहुँचकर मैंने महावीर जी के मंदिर में जाकर दर्शन किए और पुनः एक बार जीवनदान देने के धन्यवाद दिया। वहाँ से अपने बेली रोड की ओर रिक्शा पकड़कर निकल पड़ा। घर पहुँचते-पहुँचते दर्द बैचेन करने लगा। फिर रात में घरेलू उपचार आदि किया,और दर्द दूर करने की दवा लेकर लेट गया। सुबह चालक को बुला अपनी गाड़ी से शास्त्री नगर अस्पताल पहुँचा। वहाँ एक्स-रे आदि करने के बाद कंधे में फ्रेक्चर की बात कही गई। एक बैंडेज दिया गया,जिससे हाथ और कंधे में दर्द व झुकाव न हो। फ़िजियोथैरेपी के लिए कहा गया,पर इसी स्थिति में विधानसभा चुनावी शिविर में भी जाना पड़ा। संयोगवश मैं आरक्षित में रखा गया था,जाने का अवसर नहीं मिला, अन्यथा मेरी अवदशा की कल्पना कर सकते हैं। ३-४ महीने तक इस दर्द और अवसाद को झेलता हुआ अध्यापन कार्य भी करता रहा,क्योंकि वह जीविका साधन का प्रश्न था। १ साल के भीतर भगवान् द्वारा मुझे यह दूसरा जीवनदान थाl

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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