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कालिंदी और कपिला

डाॅ. मधुकर राव लारोकर ‘मधुर’ 
नागपुर(महाराष्ट्र)

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“सुनो जी,पड़ोस में गाय ने कुछ दिनों पहले,बछिया को जन्म दिया है, वह बहुत ही सुंदर है। मैं चाहती हूँ कि सामान के साथ,उसे भी घर ले चलें। घर में गौ माता का होना शुभ होता है।”
पत्नी ललिता की बात सुनकर कन्हैया लाल जी ने कहा-“ठीक है, ट्रक में काफी जगह रिक्त है,ले लो परंतु बछिया की कीमत,उसके मालिक की मर्जी से देना।”
गृह नगर पहुंचने पर घर में बछिया को देखकर उनका परिवार बहुत प्रसन्न हुआ। विशेषकर उनका पोता,जो ४ वर्ष का था,उसको खेलने के लिए एक और मित्र जो मिल गया था।
घर में अब बछिया की सेवा तथा उसका रखरखाव प्रारंभ हुआ।सबसे पहले कन्हैया लाल जी ने बछिया का नामकरण किया `कालिंदी।`
समय के साथ कालिंदी बड़ी होने लगी। कालिंदी के लिए रहने का कोठा बनाया गया। ललिता जी,कालिंदी को नहलाना-धुलाना ,उसकी सफाई,खाने की व्यवस्था समय निकालकर करने लगी। बहू भी उसकी सहायता करने लगी।
घर के अलावा पड़ोसी भी कालिंदी को खाने की वस्तु देने लगे।उसका ख्याल यह सोचकर रखने लगे कि गौ माता की सेवा से पुण्य की प्राप्ति होती है।
कालिंदी जब ३-५ वर्ष के लगभग हुई तो उसने एक सुंदर-सी बछिया को जन्म दिया। सभी प्रसन्न हुए एक नन्हीं-सी कालिंदी को पाकरl नवजात बच्चे का नाम `कपिला` रखा गया।
एक बार रिश्तेदार की शादी में कन्हैया लाल पत्नी के साथ दूसरे शहर गए। घर में बहू और पोता रह गए। पुत्र तो नौकरी के नाम पर बाहर ही रहता था। वापस घर आए तो उनकी बहू ने रोते हुए कहा- “बाबूजी कुएं के पास कालिंदी,कपिला और गुड्डू खेल रहे थे। वहां कैसे चले गए,पता नहीं। मैं घर में काम कर रही थी,अचानक मुझे गुड्डू के रोने की आवाज आयी। मैं दौड़कर गई तो देखा,गुड्डू कुएं के अंदर है।अच्छा हुआ,कुएं में पानी नहीं था और वह गहरा भी नहीं था। मैंने कालिंदी को बांधने वाली रस्सी का एक कोना कुएं में डाला और दूसरा कोना कालिंदी के सिर पर लपेट दिया। गुड्डू रस्सी को पकड़कर ऊपर आया और कालिंदी रस्सी को खींचती हुई आगे बढ़तीं गई।”
कन्हैया लाल जी ने कहा-“बहू मैंने कई बार कहा है कि कुएं के पास बच्चों को जाने नहीं देना है,परंतु तुमने ध्यान नहीं दिया। अच्छा हुआ कालिंदी के कारण हमारा गुड्डू सकुशल है। प्रभु की कृपा है।”

परिचय-डाॅ. मधुकर राव लारोकर का साहित्यिक उपनाम-मधुर है। जन्म तारीख़ १२ जुलाई १९५४ एवं स्थान-दुर्ग (छत्तीसगढ़) है। आपका स्थायी व वर्तमान निवास नागपुर (महाराष्ट्र)है। हिन्दी,अंग्रेजी,मराठी सहित उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाले डाॅ. लारोकर का कार्यक्षेत्र बैंक(वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त)रहा है। सामाजिक गतिविधि में आप लेखक और पत्रकार संगठन दिल्ली की बेंगलोर इकाई में उपाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-पद्य है। प्रकाशन के तहत आपके खाते में ‘पसीने की महक’ (काव्य संग्रह -१९९८) सहित ‘भारत के कलमकार’ (साझा काव्य संग्रह) एवं ‘काव्य चेतना’ (साझा काव्य संग्रह) है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में मुंबई से लिटरेरी कर्नल(२०१९) है। ब्लॉग पर भी सक्रियता दिखाने वाले ‘मधुर’ की विशेष उपलब्धि-१९७५ में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण(मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व) है। लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी की साहित्य सेवा है। पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद है। इनके लिए प्रेरणापुंज-विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन(नागपुर)और साहित्य संगम, (बेंगलोर)है। एम.ए. (हिन्दी साहित्य), बी. एड.,आयुर्वेद रत्न और एल.एल.बी. शिक्षित डाॅ. मधुकर राव की विशेषज्ञता-हिन्दी निबंध की है। अखिल भारतीय स्तर पर अनेक पुरस्कार। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
“हिन्दी है काश्मीर से कन्याकुमारी,
तक कामकाज की भाषा।
धड़कन है भारतीयों की हिन्दी,
कब बनेगी संविधान की राष्ट्रभाषा॥”

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