राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड)
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एक दिन मैंने देखा सपना,
सपने में था धर्म और कर्म…
दोनों सुलझा रहे थे एक मर्म,
मर्म में दोनों का एक ही कहना।
कहता धर्म मैं ही हूँ महान,
मुझसे जुड़ा है हर इंसान…
मेरे ही वश में है भगवान,
मैं भक्तों को देता सुरक्षा…
पूरा करता उनकी इच्छा,
पाता वह जग में सम्मान।
कर्म भी कहता बात समान,
मैं ही हूँ यहाँ सबसे महान…
सदैव मैं जैसे को तैसा देता,
नहीं किसी से भेद करता…
कर्म होता जिसका महान,
उन्हें दिलाता जग में सम्मान।
दोनों की खत्म न होती लड़ाई,
फैसले की मुझ पर आस लगाई…
मैंने दोनों पर ध्यान लगाया,
फिर उन्हें मैंने सहर्ष बताया।
धर्म हो तुम बड़े महान,
पर कर्म है सबसे प्रधान..
धर्म से लोग पाते भक्ति,
कर्म बिना ना कोई शक्ति…
धर्म है यदि युगों का सार,
कर्म है जीवन का आधार।
कर्म बिना ना होता बेड़ा पार,
अतः कर्म की शक्ति है अपार॥
परिचय–साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैl जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैl भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैl साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैl आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैl सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंl लेखन विधा-कविता एवं लेख हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैl पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंl विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।