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तेरी शिखा हूँ…

नताशा गिरी  ‘शिखा’ 
मुंबई(महाराष्ट्र)
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दिल में कोई सपना जगा के,
पागल मन को अपना बना के।
कहाँ गए तुम दिल धड़का के,
यूँ ही मुझको जोगन बना के।

ढूंढूँ तुमको हर भंवर में,
ढूंढूँ तुमको दिलों-शहर में
छिप गए हो तुम किन कलियों में,
फिरती हूँ पागल गलियों में।

न मंज़र न साहिल न कोई किनारा,
तेरे जहाँ में मैं हो गई बेसहारा।
खनकती न चूड़ी,न कहता है कंगना,
तेरे बिन जिन्दगी का अधूरा है अँगना।

न ख्वाईश है सोती,न जागता है अरमां,
जोगन बनी तेरी यादों में सजना।
न बदरी,न पानी,बंजर समां-सा,
तपा के तन को हो जाऊं धुआँ-सा।

न राधा,न मीरा,न तेरी माशूका हूँ,
खुद में समा ले,मैं तेरी शिखा हूँ।
अँधेरे हुए मन में कर दूँ उजाला,
कैसे मैं कह दूँ,खुद हो गई धुआँ हूँ।

किस संसार में जा बैठे तुम प्रिय,
हरदम-हरपल तेरी राह तकती हूँ।
पूछ ले आसमां से मैं तेरी खुशी हूँ,
हाँ तेरी शिखा हूँ,बस तेरी शिखा हूँ॥

परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”

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