कुल पृष्ठ दर्शन : 271

‘कोरोना’ से ध्वस्त होती अर्थ-व्यवस्थाएं

ललित गर्ग
दिल्ली

*******************************************************************

विकसित एवं शक्तिसम्पन्न राष्ट्रों ने दुनिया में अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए नए तरह के युद्धों को इजाद किया है,उनके भीतर नयी तरह की क्रूरता जागी है,उन्होंने दुनिया को विनाश देने के नए साधन विकसित किए हैं,जिससे अनेक बुराइयां एवं संकट बिन बुलाए दुनिया में व्याप्त हो गई। इसी विकृत सोच से आतंकवाद जन्मा,जिससे आदमी-आदमी से असुरक्षित हो गया। अब एक नए तरह के आतंकवाद को दुनिया में फैलाने के लिए तरह-तरह के वायरस विकसित हो रहे हैं,जिससे चेहरे ही नहीं चरित्र तक अपनी पहचान खोने लगे हैं। ऐसा ही है ‘कोरोना’ वायरस,जो चीन में विकसित किया गया, लेकिन यह चीन का दुर्भाग्य ही रहा कि वह इसका प्रयोग विरोधी राष्ट्रों पर करता,उससे पहले स्वयं उसका शिकार हो गया।
कोरोना से आज समूची दुनिया में इंसानी जीवन पर खतरा व्याप्त हुआ है। इसके चलते दुनिया की अर्थ-व्यवस्था चौपट हो गई है। चीन ही नहीं,भारत और बाकी दुनिया की अर्थव्यवस्था को भी बड़ी चपत लगी है। इसके चलते बीएसई और एनएसई में भारी गिरावट से निवेशकों को करीब ११ लाख करोड़ की चोट लग चुकी है। अमरीका सहित सभी बड़े देश में शेयर बाजारों का यही हाल है। कोरोना ने अब चीन से बाहर भी तेजी से पाँव पसारना शुरू कर दिए हैं। लगभग १६५ देशों में कोरोना कहर बन कर पसर रहा है। अगर हालात जल्द काबू में नहीं किए गए तो दुनिया को बहुत बड़ी आफत का सामना करना पड़ सकता है।
अब तक दुनिया में आर्थिक गिरावट के कारणों में मंदी,युद्ध,सरकारी नीतियां, व्यापार और राजनीतिक उथल-पुथल शामिल रहे हैं, लेकिन अब कोरोना के संक्रमण से जुड़ा डर, भय एवं अस्थिरता बड़ा कारण बना है, जिससे अनेक अर्थव्यवस्थाएं ध्वस्त हो चुकी है। बाजार से जुड़े लोग जानते हैं कि २००८ में जीडीपी के लगातार नकारात्मक आँकड़ों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी थी। इस दौरान अमेरिका में घरेलू ऋण और मार्टगेज ऋण न चुका पाने वाले ग्राहकों की संख्या तेजी से बढ़ी,जिसमें लेहमैन ब्रदर्स,मेरी लिंच और बैंक ऑफ अमरीका जैसे दिग्गज फंस गए थे,तथा देखते ही देखते अमेरिका के ६३ बैंकों में ताले लग गए थे। जब भी वैश्विक मंदी आई,भारत पर इसका असर तो पड़ा और इस बार भी भारत की पहले से कायम आर्थिक परेशानी अधिक विकराल बनी है।
चीन की अर्थव्यवस्था तो गंभीर संकट को झेल ही रही है,अमेरिका सहित अनेक आर्थिक महाशक्तियां भी अर्थसंकट के दौर से गुजर रही है। इस संकट के कारण अनेक दूसरे अमीर देशों में भी संकट आरंभ हो गया है। भारत में उसका क्या असर होगा,इसके बारे में दो तरह की बातें हो रही हैं। कुछ लोग कह रहे हैं कि इसका कोई खास असर हमारे ऊपर नहीं पड़ेगा,तो कुछ लोग कह रहे हैं कि इसके असर से हम बच नहीं सकते।
कोरोना का यह संकट जिस तेजी से दुनिया के अन्य मुल्कों में फैल रहा है, उससे जाहिर है कि यह अकेले चीन के जनजीवन का संकट नहीं है,बल्कि यह बाजार का भी संकट है। भारत की अर्थव्यवस्था अब भी मिश्रित अर्थव्यवस्था है,जिसमें सभी कुछ अब तक बाजार के हवाले नहीं है। जिन क्षेत्रों में बाजार की पहुंच ज्यादा है,वहां ज्यादा मारामारी हो रही है। शेयर बाजार का हाल सबसे बुरा है,पर आज अगर भारत में आर्थिक संकट को लेकर हड़कम्प नहीं है,तो इसका कारण यह है कि बाजार को मजबूत करने के बाद भी आज सरकार इस स्थिति में है कि उसके विफल होने पर वह अपनी ओर से स्थिरता की गारंटी दे सके।
भारत में कोरोना वायरस संकट अभी आरंभ ही हुआ है। उससे बचने के लिए भारत को अपने-आपको तैयार रखना चाहिए। मोदी सरकार आर्थिक मामलों में करीब-करीब संरक्षणवादी रुख ले चुकी है। संरक्षणवाद का मतलब है इस तरह की नीतियां बनाना जो आयात को हतोत्साहित करें और घरेलूू उद्योग को प्रमुखता मिले। यह विचार बुरा नहीं,लेकिन सवाल यह है कि घरेलू उद्योग को कितनी प्रमुखता मिल रही है। केन्द्र सरकार को दुनिया की अर्थव्यवस्था के साथ तालमेल बनाकर चलना होगा। केन्द्र सरकार को आर्थिक सुधारों को लेकर उदारवादी नीतियां अपनानी होंगी। आर्थिक मोर्चे पर स्पष्टता नजर आनी ही चाहिए।
कोरोना वायरस का संकट दुनिया के लिये एक बड़ी चुनौती बन गया है।ऐसे में भारत की समृद्धि की बदलती फिजाएं एवं आर्थिक संरचनाएं कोरोना के संकट को कितना पाट पाएगी,यह भविष्य के गर्भ में हैं,क्योंकि आज कहां सुरक्षित रह पाया है-ईमान के साथ इंसान तक पहुंचने वाली समृद्धि का आदर्श ? कौन करता है अपनी सुविधाओं का संयमन ? कौन करता है ममत्व का विसर्जन ? कौन दे पाता है अपने स्वार्थों को संयम की लगाम ? और कौन अपनी समृद्धि के साथ समाज को समृद्धि की ओर अग्रसर कर पाता है ? भारतीय मनीषियों ने ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः’ का मूल-मंत्र दिया था-अर्थात् सब सुखी हों, सब निरोग हों,सब समृद्ध हो। गांधीजी ने इसी बात को अपने शब्दों में इस प्रकार कहा था,-‘‘जब तक एक भी आँख में आँसू है,मेरे संघर्ष का अंत नहीं हो सकता।’’ व्यक्ति को अपने जीवन में क्या करना चाहिए,जिससे वह स्वयं सुखी रहे,दूसरे भी सुखी रहें। इसके कई उपाय हो सकते हैं, क्योंकि मानव-जीवन के कई पहलू हैं,लेकिन गोस्वामी तुलसीदास ने मनुष्य के सबसे बड़े धर्म की व्याख्या करते हुए लिखा है-‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई।’ भले हमारे पास कार, कोठी और कुर्सी न हो लेकिन चारित्रिक गुणों की काबिलियत अवश्य हो,क्योंकि इसी काबिलियत के बल पर हम स्वयं को कोरोना वायरस के संकट से बचा सकेंगे।

Leave a Reply