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‘कोरोना’ चीन का जैविक विश्व युद्ध: कड़े सवाल

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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जहाँ पूरी दुनिया ‘कोरोना’ से प्रभावित हो रही है,वहीं चीन में वुहान के अलावा यह क्यों कहीं नहीं फैला ? चीन की राजधानी आखिर इससे अछूती कैसे रह गयी ? प्रारंभिक अवस्था में चीन ने पूरी दुनिया से इस विषाणु के बारे में क्यों छुपाया ? कोरोना के प्रारंभिक नमूने को नष्ट क्यों किया ? इसे सामने लाने वाले चिकित्सक और पत्रकार को खामोश क्यों किया ? पत्रकार को तो गायब ही कर दिया गया है ? दुनिया के अन्य देशों ने जब सूचना साझा करने को कहा तो उसने सूचना साझा क्यों नहीं की ? मना क्यों किया ? कोरोना मानव से मानव में फैलता है,इसे छुपाने के लिए विश्‍व स्वास्थ्‍य संगठन के चीनी कम्युनिस्ट निदेशक का उपयोग क्यों किया गया ? संगठन के निदेशक जनवरी में बीजिग (चीन) में क्या कर रहे थे…..?? (योजना तय कर रहे थे क्या ?) “किसी भी अंतरराष्ट्रीय उड़ान के लिए कोई मार्गदर्शिका जारी करने की जरूरत नहीं है,क्योंकि यह मानव से मानव में नहीं फैलता है”…ऐसा ट्वीट ११ जनवरी तक संगठन करता रहा। क्यों ?? आज साबित हो गया कि कोरोना मानव से मानव में फैलता है…, तो फिर संगठन ने झूठ क्यों बोला ??
वुहान से एकसाथ ५० लाख लोगों को बिना चिकित्सा जाँच किए दुनिया के अलग-अलग हिस्से में क्यों भेजा गया ..?? इटली में ६ फरवरी तक मामूली प्रकरण था। एकाएक चीनी “हम चीनी हैं वायरस नहीं,हमें गले लगाइए”,प्लेकार्ड के साथ दुनिया में
‘सिटी ऑफ लव’ के नाम से मशहूर इटली के पर्यटन स्थल में लोगों को गले लगाने क्यों पहुंचे ?? पूरी दुनिया आज चीन और विश्‍व स्वास्थ्‍य संगठन को संदेह की नजर से देख रही है और ताज्जुब देखिए कि एक ही दिन चीन और संगठन दोनों भारत की तारीफ में उतर आए! क्या यह महज संयोग है ??
और इसके अगले ही दिन भारत में चीन के राजदूत ट्वीट कर उम्मीद करते हैं कि भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय में उसकी पैरवी करे। आखिर क्यों ? नेहरू की एक गलती का खामियाजा हम भुगत चुके हैं। यह नरेन्द्र मोदी सरकार है,और उम्मीद है यह कम से कम वह गलती तो नहीं ही दोहराएगी ? ‘सार्क’ से लेकर जी-२० तक की बैठक प्रम श्री मोदी के कहने पर हो रही है‌। संकट के समय भारत वैश्विक नेता के रूप में उभरा है। इटली,जर्मनी,स्पेन,फ्रांस, ब्रिटेन,अमेरिका तक जब कोरोना से निबटने में असफल हो रहे हैं,तो प्रम श्री मोदी की पहल पर भारत इससे कहीं बेहतर तरीके से सामना कर रहा है। चीन इसी का फायदा उठाकर यह चाहता है कि भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय में उसके अछूतपन को दूर करे। अब यह नहीं होगा। चीन संदेह के घेरे में है और रहेगा! चीन विश्व से धीरे-धीरे ‘अलग-थलग’ हो रहा है। विश्व बाजार में उसको अपने सामान के बहिष्कार की आशंका सता रही है, जिसकी खबर उसको हो गयी है। इसलिए,आज धोखेबाज चीन विश्व मंच पर अपने बचाव के लिए भारत से सहायता माँग रहा है। जिस भारत को इसने ७० वर्षों में सिर्फ धोखा ही दिया है। एक लुच्चे आतंकवादी अजहर के लिए यह संयुक्त राष्ट्र संघ में ‘वीटो’ लगाता है। भारत के एनएसजी सदस्य बनने में बाधा डालता है। ३७० को लेकर भारत के आंतरिक मामले में भी हस्तक्षेप का प्रयास किया था,जिसमें उसे मुँह की खानी पड़ी थी। इस्लामिक आतंकवादी देश पाकिस्तान को यह तोप समझता था,पर १९६२ के युद्ध का धोखा कोई भी देशभक्त भारतीय नहीं भूला है I अप्राकृतिक मानव,चीनी डिक्टेटरों को अभी तक भारत का सामर्थ्य नहीं पता था कि,जिस दिन इसके भारतीय सेकुलर-वामपंथी दलाल सत्ता में नहीं होंगे,उस दिन इसका क्या होगा ? इसके ७० वर्षों की धोखेबाजी का खामियाजा एक न एक दिन चुकाना पड़ेगा ? और आज विश्व जनमानस के छुआ-छूत के शिकार से बचने के लिए चीन भारत के कदमों में आ गया है।
अब चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का चीन में तख्ता पलट ही चीन को बचा सकता है।

परिचय-गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

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