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स्त्री वेदना को समझना होगा

सुशीला रोहिला
सोनीपत(हरियाणा)
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आज विकासवाद के युग में मानव यह सोचता है कि हमने चाँद पर अपना आशियाना बना लिया,समुन्दर की गहराईयों को नाप दिया है,पर आज भी स्त्री की विडंबना तो वहीं रूकी हुई है,जो द्वापर युग में तथा अन्य युग थी। आज भी उसका अस्तित्व मिटाया जा रहा है। बलात्कार का शिकार दहेज की बलि,तलाक की अग्नि में जलना पड़ रहा है। लिंगभेद के कारण पुत्र
प्राप्ति न होने पर उसको ही जिम्मेदार ठहराया जाता है। आज यह अपने-आपमें एक प्रश्न चिन्ह बना हुआ है।
मैं समाज के सामने प्रश्न रखती हूँ,कि वह कब तक औरत का बहिष्कार करता रहेगा ? मनुष्य का मन कब तक अपने बलात्कार का शिकार अबला को बनाता रहेगा ?
अब समाज की देवियों,नारियों,माँ,बहन,बेटी को भारत का पौराणिक इतिहास याद दिलाना चाहती हूँ,कौरवों की भरी सभा में द्रौपदी की मदद समाज नहीं की,उसने सतीतत्व को बचाने के लिए दांतों तले दबाते हुए अपने चीर को बचाने के लिए उस ईश्वरीय नाम की शक्ति से अपनी रक्षा की और समाज को ईश्वरीय नाम की शक्ति के प्रताप से परिचित कराया,उन्हें दरिदों को मुँह की खानी पड़ी। सीता माँ के से इतिहास से सभी विदित है कि,दूसरे देश में क्रूरताभरे वातावरण में एक तिनके का सहारा लेकर आत्मशक्ति का जागरण करते हुए अपने को सुरक्षित रखा।
आज नारी को भी ऐसे ही अपनी सोई हुई आत्मा को जागना होगा। आत्मा को जागृत करने के लिए आत्म साक्षात्कार करना होगा। आत्मा को जानने के लिए आत्म ज्ञान की
विद्या को सीखना होगा,जिससे हमारी सोई हुए शक्ति का प्रगटीकरण हो सके और दरिदें बलात्कारी को हम ईश्वरीय नाम अग्नि की शक्ति से चकनाचूर कर सकें। हे माताओ उठो! अपनी सोई हुई चेतना का जागरण करें। स्वयं ही दुर्गा,काली,माँ सीता,द्रौपदी बन कर समाज के द्ररिदों का संहार करने की मिसाल बन समाज की रक्षा करें।
नारी जब भी अपने धर्म,अपनी शक्ति को भूली ही,तब तब संसार में वैमनस्यता फैली है,और वरूण शंकर पैदा हुए हैं,जो नारी के लिए घातक बन कर मानवता के भक्षक बन कर काल के ग्रास बन कर नरकगामी हुए हैं।
जब मानव समाज बर्हिमुखी होकर जीवन का निर्वाह करता है,तो निजी स्वार्थ का ज्वालामुखी फटने लगता है,जो दुष्कर्मों की अग्नि बाहर फैंकने लगता है,जिससे भ्रष्टाचार, आंतक,बलात्कार,बेईमानी,छल कपट,
धोखाधड़ी,उग्रवाद,नक्सलवाद आदि लपटों से घिर जाता है। उसका मन उस आग में जल कर अंधकार के खंडहर में गिर कर काला हो जाता है। वह अपने चहुंऔर ऐसा ही वातावरण फैला कर हैवानियत को जन्म देता है।
जब दानवता,मानवता पर हावी हो जाती है तो कहर बरसने लगता है और विनाशकारी वर्षा के जल से मानवता ग्रसित होती है। एक दृष्टिकोण से देखा जाए तो जब प्रकृति का प्रकोप एक भंयकर वर्षा के रुप में बरसता है तो बड़े से बड़े वृक्ष को उखाड़ फेंकता है लेकिन घास का तिनका अपने स्थान पर सुरक्षित रह जाता है।
आज आधुनिकता तथा भौतिकवाद की चकाचौंध ने मानव की प्रवृत्ति को बर्हिमुखी बना दिया है। अज्ञानता के तिमिर ने उसके मन को काला कर दिया है। कालिमा के कारण उसकी तन्मात्रा (पंच ज्ञानेन्द्रियाँ) ने
काला वेश धारण कर एक दरिन्दे का रूप ग्रहण कर लिया है। राग वृति से मानव अपनी प्रशंसा का आदि होकर भोगी होकर रोगी बनने लगता है,जिसके कारण बलात्कार जैसी भंयकर बीमारी का कीटाणु भी पनप जाता है।
आज मानव वासनाओं का प्रेमी बन कर ही प्रेम करता है,लेकिन प्रेम की परिभाषा त्याग
है,जो फलदायी होता है। अंहकार एक वृक्ष है और काम,क्रोध, राग,लोभ,मोह यह सब शाखाएँ हैं। इनसे उत्पन्न होने वाली पत्तियाँ मानव की दूषित प्रवृत्तियाँ हैं।
स्त्री की वेदना को संपूर्ण मानव समाज को समझना होगा और दूषित भावनाओं को त्याग कर सदभावना का संचार कर माता-बहनों-बेटियों की सर्वदा के लिए रक्षा करनी होंगी,तभी हम विकास की चरम सीमा को छू सकते हैं। आतंकवादी,बलात्कारी भ्रष्टाचारी मन का त्याग करके ही भारतमाता को विश्व गुरु बनाने में हम अपना योगदान करेंगे। जहाँ नारी का सम्मान होगा,वही देश महान होगा।

परिचय–सुशीला रोहिला का साहित्यिक उपनाम कवियित्री सुशीला रोहिला हैl इनकी जन्म तारीख ३ मार्च १९७० और जन्म स्थान चुलकाना ग्राम हैl वर्तमान में आपका निवास सोनीपत(हरियाणा)में है। यही स्थाई पता भी है। हरियाणा राज्य की श्रीमती रोहिला ने हिन्दी में स्नातकोत्तर सहित प्रभाकर हिन्दी,बी.ए., कम्प्यूटर कोर्स,हिन्दी-अंंग्रेजी टंकण की भी शिक्षा ली हैl कार्यक्षेत्र में आप निजी विद्यालय में अध्यापिका(हिन्दी)हैंl सामाजिक गतिविधि के तहत शिक्षा और समाज सुधार में योगदान करती हैंl आपकी लेखन विधा-कहानी तथा कविता हैl शिक्षा की बोली और स्वच्छता पर आपकी किताब की तैयारी चल रही हैl इधर कई पत्र-पत्रिका में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका हैl विशेष उपलब्धि-अच्छी साहित्यकार तथा शिक्षक की पहचान मिलना है। सुशीला रोहिला की लेखनी का उद्देश्य-शिक्षा, राजनीति, विश्व को आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार मुक्त करना है,साथ ही जनजागरण,नारी सम्मान,भ्रूण हत्या का निवारण,हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनाना और भारत को विश्वगुरु बनाने में योगदान प्रदान करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-हिन्दी है l आपकी विशेषज्ञता-हिन्दी लेखन एवं वाचन में हैl

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