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ज़िन्दगी इक नदी…

सुनील चौरसिया ‘सावन’
काशी(उत्तरप्रदेश)

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जिंदगी इक नदी है,
अनवरत प्रवाह
किए बिना परवाह,
आगे बढ़ते ही जाना
वापस कभी ना आनाl
‘सावन’ समय के साथ,
कदमताल मिलाना
धार से अलग हो
खेतों में जाना,
लोक कल्याण हेतु
खुद को मिटानाl
यही तो नदी है,
यही जिंदगी हैl

कहीं है सुखद-शांति,
कहीं अशांति-क्रांति
कहीं है पारदर्शिता,
तो कहीं भ्रम-भ्रांतिl

मन से गुनो,
नदी से सुनो-
मृत्यु की निनाद,
और जीवन का संगीतl
करो फूलों से,शूलों से,
पत्थरों से प्रीतl

वह जीवन है नीरस,
जहां आँसू नहीं
जहां समस्याएं नहीं,
जहां आलोचक नहींl
है दु:ख में ही गति,
है दु:ख में प्रगति
सोया है सुख का सागरl
ओढ़ कर दु:ख की तरंग,
यही है जीवन का रंगl

दु:ख हो या सुख,
सदा गुनगुनाना
सदा मुस्कुराना,
आगे बढ़ते ही जानाl
यही तो नदी है,
यही जिंदगी हैll

परिचय : केन्द्रीय विद्यालय टेंगा वैली अरुणाचल प्रदेश में बतौर स्नातकोत्तर शिक्षक हिंदी एवं एसोसिएट एनसीसी अधिकारी पद पर सेवा प्रदान कर रहे सुनील चौरसिया ‘सावन’ की जन्मतिथि-५अगस्त १९९३ और जन्म स्थान-ग्राम अमवा बाजार(जिला-कुशी नगर, उप्र)है। कुशीनगर में हाईस्कूल तक की शिक्षा लेकर बी.ए.,एम.ए.(हिन्दी)सहित वाराणसी से बीएड भी किया है। इसके अलावा डिप्लोमा इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन,एनसीसी, स्काउट गाइड,एनएसएस आदि भी आपके नाम है। आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन,लेखन,गायन एवं मंचीय काव्यपाठ है,तो सामाजिक क्षेत्र में नर सेवा नारायण सेवा की दृष्टि से यथा सामर्थ्य समाजसेवा में सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,कहानी,लघुकथा,गीत, संस्मरण,डायरी और निबन्ध आदि है। अन्य उपलब्धियों में स्वर्ण-रजत पदक विजेता हैं तो राष्ट्रीय एवं विश्व भोजपुरी सम्मेलन के बैनर तले मॉरीशस, इंग्लैंड,दुबई,ओमान और आस्ट्रेलिया आदि सोलह देशों के साहित्यकारों एवं सम्माननीय विदूषियों-विद्वानों के साथ काव्यपाठ एवं विचार विमर्श शामिल है। एक मासिक पत्रिका के उप-सम्पादक भी हैं। लेखन का उद्देश्य ज्ञान की गंगा बहाते हुए मुरझाए हुए जीवन को कुसुम-सा खिलाना,सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार कर सकारात्मक सोच को पल्लवित-पुष्पित करना,स्वान्त:सुखाय एवं लोक कल्याण करना है। श्री चौरसिया की रचनाएँ कई समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।

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