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लहू का रंग एक-सा

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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हर मनुष्य के लहू का रंग, एक जैसा ही है,
जैसे जीवन रक्षा के लिए जरूरत पैसा ही है।

लिखने-पढ़ने का अधिकार, हर जाति का है,
कागज-कलम, ज्ञान-विज्ञान, वही संतान तो पाती है।

एक ही धरती, एक ही अनाज, सब खाए-पिए हैं,
एक जैसा जल पीकर, दु:ख- सुख सह के जीए हैं।

विद्वान होकर भी तुम, क्यों बांट रहे हो जाति-धर्म ?
मरने पर यह कुछ काम नहीं देगा, सम्भालो कर्म।

हर धर्म की माँ, एक-सी प्रसव पीड़ा भी सही है,
पति के जाने के बाद, एक-सी ‘कल्याणी’ जिन्दगी है।

जब देश खतरे में था, तुम याद करो वो कुर्बानी,
वहाँ थे मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई और हिन्दुस्तानी।

बेटा और बेटी में, माता-पिता का स्नेह है एक जैसा,
बांटो नहीं धर्म, ‘लहू का रंग’ भी तो है एक जैसा॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |