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जल से ही जीवन चले

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

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ज से जल जीवन स्पर्धा विशेष…

‘जल से ही जीवन चले,जल से यह संसार।
जल से ही यह सृष्टि है,जल है प्राणाधार॥’

हम नित ही सुनते आए हैं कि ‘जल ही जीवन है।’ जल के बिना सुनहरे कल की कल्पना भी नहीं की जा सकती। वस्तुत: जीवन के सभी कार्यों का निष्पादन करने के लिये जल की आवश्यकता होती है। पृथ्वी पर उपलब्ध एक बहुमूल्य संसाधन है जल,या यूँ कहें कि यही सभी सजीवों के जीने का आधार है। धरती का लगभग तीन-चौथाई भाग जल से घिरा हुआ है,किन्तु इसमें से ९७ प्रतिशत पानी खारा है,जो पीने योग्य नहीं है। पीने योग्य पानी की मात्रा सिर्फ ३ फीसद है। इसमें भी २ फीसदी पानी ग्लेशियर एवं बर्फ के रूप में है। इस प्रकार सही मायने में मात्र १ प्रतिशत पानी ही मानव के उपयोग हेतु उपलब्ध है।
नगरीकरण और औद्योगिकीकरण की तीव्र गति व बढ़ता प्रदूषण तथा जनसंख्या में लगातार वृद्धि के साथ प्रत्येक व्यक्ति के लिए पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है,देश के कई हिस्सों में पानी की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है। प्रतिवर्ष यह समस्या पहले के मुकाबले और बढ़ती जाती है, लेकिन हम हमेशा यही सोचते हैं बस जैसे-तैसे गर्मी का समय निकल जाए,बारिश आते ही पानी की समस्या दूर हो जाएगी और यह सोचकर जल सरंक्षण के प्रति बेरुखी अपनाए रहते हैं।
आगामी वर्षों में जलसंकट की समस्या और अधिक विकराल हो जाएगी,ऐसा मानना है विश्व आर्थिक मंच का। इसी संस्था के प्रतिवेदन में कहा गया है कि दुनियाभर में ७५ प्रतिशत से ज्यादा लोग पानी की कमी के संकटों से जूझ रहे हैं। ऐसे में ‘विश्व जल दिवस’ महज औपचारिकता नहीं है, बल्कि जल संरक्षण का संकल्प लेकर अन्य लोगों को इस संदर्भ में जागरुक करने का एक दिन है।
शुद्ध पेयजल की अनुपलब्धता और संबंधित ढेरों समस्याओं को जानने के बावजूद देश की बड़ी आबादी जल संरक्षण के प्रति सचेत नहीं है। जहां लोगों को मुश्किल से पानी मिलता है,वहां लोग जल की महत्ता को समझ रहे हैं,लेकिन जिसे बिना परेशानी के जल मिल रहा है,वे ही बेपरवाह नजर आ रहे हैं। आज भी शहरों में फर्श चमकाने,गाड़ी धोने और गैर-ज़रूरी कार्यों में पानी को निर्ममता पूर्वक बहाया जाता है।
प्रदूषित जल में आर्सेनिक,लौहांस आदि की मात्रा अधिक होती है,जिसे पीने से तमाम तरह की स्वास्थ्य संबंधी व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में ८६ फीसदी से अधिक बीमारियों का कारण असुरक्षित व दूषित पेयजल है। वर्तमान में करीब १६०० जलीय प्रजातियां जल प्रदूषण के कारण लुप्त होने की कगार पर हैं,जबकि विश्व में करीब १.१० अरब लोग दूषित पेयजल पीने को मजबूर हैं और साफ पानी के बगैर अपना गुजारा कर रहे हैं।
ऐसी स्थिति सरकार और आम जनता दोनों के लिए चिंता का विषय है। इस दिशा में अगर त्वरित कदम उठाते हुए सार्थक पहल की जाए तो स्थिति बहुत हद तक नियंत्रण में रखी जा सकती है, अन्यथा अगले कुछ वर्ष हम सबके लिए चुनौतीपूर्ण साबित होंगे।
अत: यह अपरिहार्य है कि हम जल का अपव्यय व जल-स्रोतों का प्रदूषण रोकें,तथा वर्षा के जल का संग्रहण करें। जल जीवन है,यह तय है। जल न हो, तो न यह सृष्टि बचेगी,न वनस्पति,न कृषि और न ही कोई जीवधारी। यही कहूँगा कि,-
‘जल अमृत है,ज़िन्दगी,साँसों का आधार।
नहीं नीर तो शुष्कता,जीवन बिन आधार॥’

परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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