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निष्प्राण करें हम ‘कोरोना’

ओम अग्रवाल ‘बबुआ’
मुंबई(महाराष्ट्र)
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मानवता पर जब जब कोई,ऐसी आफत आई,
खुद ही खुद को डसती मानों,अपनी ही परछाई।

भरी दुपहरी में सूरज को,मानो निगल गई रजनी,
और भोर के हाथों से यूँ,गुपचुप फिसल गई रजनी।
कोरोना के संकट को कुछ, सहज समझना ठीक नहीं।
सही गलत की परिभाषा में, सहज उलझना ठीक नहीं।।

संस्कार की परिपाटी का,हमको पालन करना होगा,
सरकारी आदेशों का भी,हमको पालन करना होगा।
कोरोना के थमने तक तो,हमको घर में रहना होगा,
निष्प्राण करें हम कोरोना को,इस हेतु हमें कुछ सहना होगा॥

हर घंटे हम साबुन से निज,हाथों को नित साफ करें,
इक-दूजे का इक मीटर की,दूरी का इंसाफ करें।
आँख-नाक से पानी आए,साथ में खाँसी सूखी हो,
गर बुखार से तन तपता हो,स्वांस जरा कुछ रूखी हो॥

मौसम की इन तकलीफों को,कोरोना मत मानो तुम,
किन्तु स्वयं के कर्तव्यों को,निश्चित ही पहचानो तुम।
तत्काल चिकित्सक से तुम अपनी,जाकर जाँच कराओ,
जैसा हो निर्देश उसे तुम,अंतस से अपनाओ॥

इधर-उधर की बातों में,हरगिज ही मत आना तुम,
सहज सुरक्षा के नियमों को,सहज सदा अपनाना तुम।
थोड़ी-सी गर दिक्कत हो तो,उसको सहज उठाओ,
और साथ जो संगी-साथी,उनको भी समझाओ॥

खुद ही खुद को खुद के घर में,बंदी तुम्हें बनाना होगा,
इसी तरह से कोरोना को,हरगिज मार भगाना होगा॥

परिचय-ओमप्रकाश अग्रवाल का साहित्यिक उपनाम ‘बबुआ’ है।आप लगभग सभी विधाओं (गीत, ग़ज़ल, दोहा, चौपाई, छंद आदि) में लिखते हैं,परन्तु काव्य सृजन के साहित्यिक व्याकरण की न कभी औपचारिक शिक्षा ली,न ही मात्रा विधान आदि का तकनीकी ज्ञान है।आप वर्तमान में मुंबई में स्थाई रूप से सपरिवार निवासरत हैं ,पर बैंगलोर  में भी  निवास है। आप संस्कार,परम्परा और मानवीय मूल्यों के प्रति सजग व आस्थावान तथा देश-धरा से अपने प्राणों से ज्यादा प्यार है। आपका मूल तो राजस्थान का झूंझनू जिला और मारवाड़ी वैश्य है,परन्तु लगभग ७० वर्ष पूर्व परिवार उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में आकर बस गया था। आपका जन्म १ जुलाई को १९६२ में प्रतापगढ़ में और शिक्षा दीक्षा-बी.कॉम.भी वहीं हुई है। आप ४० वर्ष से सतत लिख रहे हैं।काव्य आपका शौक है,पेशा नहीं,इसलिए यदा-कदा ही कवि मित्रों के विशेष अनुरोध पर मंचों पर जाते हैं। लगभग २००० से अधिक रचनाएं आपने लिखी होंगी,जिसमें से लगभग ७०० का शीघ्र ही पाँच खण्डों मे प्रकाशन होगा। स्थानीय स्तर पर आप कई बार सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे हैं। आप आजीविका की दृष्टि से बैंगलोर की निजी बड़ी कम्पनी में विपणन प्रबंधक (वरिष्ठ) के पद पर कार्यरत हैं। कर्नाटक राज्य के बैंगलोर निवासी श्री  अग्रवाल की रचनाएं प्रायः पत्र-पत्रिकाओं और काव्य पुस्तकों में  प्रकाशित होती रहती हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जन चेतना है।

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