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अर्थ शेष

डॉ.सोना सिंह 
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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मेरी पंक्तियों पर हँसने वाले, 
मेरे शब्दों पर तंज कसने वाले
निकालते हैं त्रुटियां,
नया नहीं है,अर्थ नहीं है कविता में तुम्हारी।
मेरा प्रतिप्रश्न रहता है,
किस कविता में अर्थ शेष है ?
किस पंक्ति में भेद बचा है ? 
प्रत्येक शब्द खाली-सा प्रतीत होता है।
क्योंकि,कविता तो निकलती है जिंदगी से,
और जिंदगी को निगल रखा है,
ईर्ष्या,द्वेष और अहं के दावानल ने॥
परिचय-डॉ.सोना सिंह का बसेरा मध्यप्रदेश के इंदौर में हैl संप्रति से आप देवी अहिल्या विश्वविद्यालय,इन्दौर के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला में व्याख्याता के रूप में कार्यरत हैंl यहां की विभागाध्यक्ष डॉ.सिंह की रचनाओं का इंदौर से दिल्ली तक की पत्रिकाओं एवं दैनिक पत्रों में समय-समय पर आलेख,कविता तथा शोध पत्रों के रूप में प्रकाशन हो चुका है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के भारतेन्दु हरिशचंद्र राष्ट्रीय पुरस्कार से आप सम्मानित (पुस्तक-विकास संचार एवं अवधारणाएँ) हैं। आपने यूनीसेफ के लिए पुस्तक `जिंदगी जिंदाबाद` का सम्पादन भी किया है। व्यवहारिक और प्रायोगिक पत्रकारिता की पक्षधर,शोध निदेशक एवं व्यवहार कुशल डॉ.सिंह के ४० से अधिक शोध पत्रों का प्रकाशन,२०० समीक्षा आलेख तथा ५ पुस्तकों का लेखन-प्रकाशन हुआ है। जीवन की अनुभूतियों सहित प्रेम,सौंदर्य को देखना,उन सभी को पाठकों तक पहुंचाना और अपने स्तर पर साहित्य और भाषा की सेवा करना ही आपकी लेखनी का उद्देश्य है।

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