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`अस्मत` लूटने की कड़ी सजा दी जाए,वरना…

सारिका त्रिपाठी
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)
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हैदराबाद घटना-विशेष रचना……………
हम हर दूसरे-तीसरे दिन सोशल मीडिया,अखबार,टी.वी. चैनलों पर बलात्कार पीड़िताओं की भयावह तस्वीरें देखते हैं,कहीं जली हुई,कहीं पर सर काट के अलग फेंक दिया गया तो कहीं पर उनके गुप्तांगों में तरह-तरह की चीजें कांच की बोतलें,लोहे की रॉड डालकर उनकी हत्या कर दी गई है। कहीं उन्हें जिंदा जलाकर मार डाला गया,मगर हम कब देखेंगे ऐसी तस्वीरें उन बलात्कारियों की ? कब उनके चेहरे हम फैलाएंगे ? कब हम दुनिया को यह बताएंगे,यही है वह चेहरा जिन्होंने बलात्कार किया था,इसलिए उनको ऐसी सजा मिली। इनको जला दिया गया,उनके गुप्तांगों को काट दिया गया,इनके सर काट के फेंक दिए गए। सरेआम फांसी दी गई चेहरा खोलकर,ढँक कर नहीं। कब देखेंगे हम ऐसी तस्वीरें ? आखिर ये तस्वीरें हम क्यों नहीं देखते हैं,हमारा कानून हमको ऐसी तस्वीरें क्यों नहीं दिखाता है।
क्या हर बार हम अपनी बहन-बेटियों को ही देखेंगे प्रताड़ित होते हुए,उनके अपराधियों को कभी नहीं देखेंगे! हम हर बार खबर सुनते हैं कि फलां लड़की का बलात्कार हो गयाl उसके साथ यह जघन्य अपराध हो गया,उसके साथ यह एक वीभत्स कुकर्म किया गया,लेकिन अपराधी के बारे में तो कभी कुछ पता नहीं चलताl बस एक बात पता चलती है कि अगर पकड़ा भी गया कि वह जमानत पर छूटा हुआ है। अभी जांच चल रही है,सबूत ढूंढे जा रहे हैं।
`बेटियों को पढ़ाओ और लिखाओ,आत्मनिर्भर बनाओ`…लेकिन इन सबसे क्या होगा ? बेटियां निडर कब रह पाएंगी ? कब बेटियां सुरक्षित महसूस कर पाएंगी अपने-आपको ?
हमारे समाज को क्या हो गया है ? हर एक पुरुष से सवाल पूछना चाहती हूँ कि,आखिर उनके अंदर सेक्स की इतनी गर्मी क्यों है ? क्यों किसी बेटी को इंसान नहीं समझते,उसे सिर्फ एक संभोग की वस्तु क्यों समझते हैं ? क्यों किसी भी लड़की को देखकर उनके अंदर एक वासना की इच्छा जागृत हो जाती है। क्यों वह हर एक लड़की को देखकर उनके साथ सोने की इच्छा रखते हैं। जब चार आदमी एक अकेली लड़की को देखते हैं,उनमें से किसी के अंदर जब गंदी इच्छा जागृत होती है,तो दूसरा आदमी उसे क्यों नहीं रोकता है ? दूसरा आदमी भी उसी इच्छा में शामिल क्यों हो जाता है,क्यों ?
तेलंगाना की `दिशा`(परिवर्तित नाम) की स्कूटी अस्पताल से लौटते वक्त एक सुनसान जगह पर पंक्चर हो जाती है। अपनी छोटी बहन को सूचना देती है बताती है कि वह अकेली है,और उसे डर लग रहा है। उसके बाद वह छोटी बहन को अगला फोन करती है कि कुछ लोग उसकी मदद के लिए आए तो हैं,लेकिन वे लोग उसे संदिग्ध लग रहे हैंl दिशा को छोटी बहन किसी सुरक्षित जगह टोल नाके तक जाने की सलाह देती है,और उस जगह का पता लेती हैl इस बीच वह अपनी बहन दिशा को फोन करती,लेकिन उसका फोन अब लगातार बंद आता हैl छोटी बहन घबरा कर उस स्थान पर पहुंचती है,लेकिन वहां पहुंचने के बाद बहन कहीं भी नहीं दिखाई देती। अगले दिन दिशा की जली हुई लाश मिलती है,उसके साथ चार लोगों ने मिलकर सामूहिक बलात्कार किया और फिर पेट्रोल छिड़ककर उस जिंदा लड़की को जलाकर मार डाला। उसकी गलती बस इतनी थी कि,उसने अपने लिए लोगों से मदद की आस रखी। मदद के नाम पर आए उन लोगों ने दिशा की जिंदगी समाप्त कर दिया,देश से एक चिकित्सक को मिटा दिया,माँ-बाप से उनकी बेटी छीन ली,बहन से बहन छीन लीl और जो सबसे बड़ी बात कि,समाज से एक बार फिर `विश्वास` का कत्ल कर दिया। लोग अब मदद मांगने से डरेंगे,मदद करने वालों से डरेंगे।
दिशा हम लोग शर्मिंदा हैं,मगर हम ही बेशर्म भी हैंl हम हर बार इन बातों को भूल जाते हैं,ऐसे अपराधों को भूल जाते हैं,फिर जब एक नया अपराध होता है तो फिर हम भी जाग जाते हैं और हम फिर शर्मिंदा हो जाते हैं। अपराधियों को सजा मिली कि नहीं मिली,इस बात को लेकर हम ठंडे पड़ जाते हैं। बस यह चक्र के समान चलता रहता हैl अपराध होता है,हम अपनी आवाज बुलंद करते हैंl फिर हम ठंडे हो जाते हैं,फिर एक अपराध होता है,फिर हम अपनी आवाज बुलंद करते हैंl फिर ठंडे पड़ जाते हैं,फिर…फिर…बस बार-बार यही होता है,मगर अपराधी हर बार बच जाता हैl हर बार समाज की नजरों में आने से बच जाता हैl आज तक लोग ठीक से जान ही नहीं पाए कि,वह कौन लोग थे,उनके चेहरे कैसे थे ? वे किस परिवार के बेटे थे,वह किसके भाई थे,किसके बाप थे ??? हर बार बेटियों का ही पता चलता हैl जिनके साथ बलात्कार हुआ,वो किसकी बहन थी,किसकी बेटी थी,कैसा चेहरा था,किस समाज की थी ??
लानत है हम पर,हम किसी अपराधी को नहीं पहचानतेl अब तक जितनी लड़कियों के बलात्कार हुए,जिन लोगों को मार डाला गया,उनमें से एक भी अपराधी का चेहरा हमें याद नहीं। हम नहीं जानते कि वह वहशी दरिंदा किसका बेटा था,किस परिवार का था। क्यों उनके परिवार रोते हुए सामने नहीं आते ? क्यों अपनी छाती नहीं पीटते कि हमने ऐसी औलाद क्यों पैदा की ? इसको सरेआम फाँसी दे दी जाए,इसको कड़ी से कड़ी सजा दी जाए,हम शर्मिंदा हैंl हम खुद अपराधी हैं कि हमने ऐसे बेटे को जन्म दिया,जिसने एक बेटी का जीवन बर्बाद किया।
जिस दिन से माँ-बाप अपने बेटों के खिलाफ समाज के सामने आकर खड़े हो जाएंगे,उस दिन से भी यह अपराध कम होने लगेंगे,क्योंकि अपराधियों की जमानत देने वाला कोई नहीं रहेगा,उनके किए पर पर्दा डालने वाला कोई नहीं रहेगा। आज भी एक चेहरा ऐसा नहीं,जिसे हमने और १० लोगों में साझा किया कि,यही वह चेहरा है जिसने यह जघन्य अपराध कियाl जिसने कुकृत्य किया,एक बेटी का-एक छोटी बच्ची का-एक अबोध शिशु का जीवन बर्बाद कर दिया,सिर्फ अपनी वासना की क्षणिक इच्छा पूर्ति के लिए।
हम नहीं बोलेंगे कि अपराधी को फाँसी दे दो,उसका गुप्तांग काट दो,उसकी पांच अंगुलियों में से तीन काट दो,उसकी एक आँख फोड़ दो,उसकी जबान काट दो। हम कुछ नहीं बोलेंगेl हम बोलने लायक ही नहीं रहे,क्योंकि हमारा कानून सुनने के लायक नहीं रहाl हमारे पास शब्द नहीं है,ऐसा नहीं है लेकिन हमारा कानून बहरा हैl इन सब चीजों का एक ही रास्ता है कि,जहां भी अपराधी हाथ लगे,वहीं पर उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएं। अब ऐसे अपराधियों को सजा देने के लिए एक अलग `भीड़ तंत्र` बनाया जाए और इन्हें इनके किए की कड़ी से कड़ी सजा दी जाए,वरना ऐसे अपराधी सरेआम घूमते रहेंगे,और कानून अपने नियम और धाराओं की मर्यादाओं को लेकर इन्हें बचाता रहेगा,सबूतों के न मिलने की आड़ में।
बेटियाँ तो अनपढ़ भी सलीकेदार होती हैं,आज जरूरत है बेटों को पढ़ाने कीl बेटियों को पहनावा बदलने की जरूरत नहीं,जरूरत है बेटों के नजरिया बदलने कीl जानवरों को प्रेम से ठीक करने वाली `दिशा` इंसान की पशुता का शिकार हो गयी,काश! सीख लिया होता वक़्त रहने हुनर पुरुष में छिपे जानवर को सीधा करने काl आज कहाँ गए सब लाल झंडे,जो उठ खड़े होते हैं वक़्त बेवक़्त बे-सिर-पैर के मुद्दों पर। आज कहाँ है सभी खबरची,जो चीखते रहते हैं हर बे-सिर-पैर की बातों परl आज फिर इंतज़ार है अपनी माँ दुर्गा का,जो करे संहार इन राक्षसों का,क्योंकि भारत अब आर्यावर्त नहीं रहा,बन गया है आरामगाह कुछ बलात्कारियों का।

परिचय-सारिका त्रिपाठी का निवास उत्तर प्रदेश राज्य के नवाबी शहर लखनऊ में है। यही स्थाई निवास है। इनकी शिक्षा रसायन शास्त्र में स्नातक है। जन्मतिथि १९ नवम्बर और जन्म स्थान-धनबाद है। आपका कार्यक्षेत्र- रेडियो जॉकी का है। यह पटकथा लिखती हैं तो रेडियो जॉकी का दायित्व भी निभा रही हैं। सामाजिक गतिविधि के तहत आप झुग्गी बस्ती में बच्चों को पढ़ाती हैं। आपके लेखों का प्रकाशन अखबार में हुआ है। लेखनी का उद्देश्य- हिन्दी भाषा अच्छी लगना और भावनाओं को शब्दों का रूप देना अच्छा लगता है। कलम से सामाजिक बदलाव लाना भी आपकी कोशिश है। भाषा ज्ञान में हिन्दी,अंग्रेजी, बंगला और भोजपुरी है। सारिका जी की रुचि-संगीत एवं रचनाएँ लिखना है।

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