डॉ. मेघना शर्मा,
बीकानेर(राजस्थान)
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काव्य संग्रह हम और तुम से
कहीं स्मृतियों के झरोखों की
भीगी संदों से,
आती फुहारों में पिघलती
वर्तमान की चट्टानें
और,
डूबती कभी जलमग्न
परिस्थितियों के लबादे ओढ़े
विचलित ग्रंथियां,
हो जाती है आजा़द।
अतीत के खंडहरों से,
तैरने लगती हैं
आसपास,
कुछ जानी-पहचानी
मगर वीरान हवेलियों के
कुंडों से सुसज्जित,
द्वारों की सुनहरी झीरी
जिसमें से झांकते
एहसास।
याद दिला जाते हैं,
चाँदी-सी ठंडक
और,
सुकून भरे वो पल…
मिले थे जब
हम और तुम,
पहली दफा एकांत में!!