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माँ उठ!

दीपक शर्मा

जौनपुर(उत्तर प्रदेश)

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माँ के मृत शरीर से
चादर खींचता बच्चा,
नादान है अभी
उसे नहीं पता!
उसकी माँ
कब तक सोएगी वहाँ!
या उठेगी ही नहीं अब
वह जगा रहा है माँ को-
माँ उठ!
अभी नहीं पहुँचे,
हम अपने गाँव
तू कहती थी न,
तीन दिन में पहुँच जाएंगे हम
चार दिन हो चला है
माँ!
ये लोग
पागल हो गए हैं,
कह रहे हैं-
तू मर चुकी है
मर जाना क्या होता है
उठ तू ही बता मुझे।
भूख लगी है माँ,
चार दिन से
तुम भी तो
कुछ नहीं खायी हो,
चल घर
वहाँ कुछ जरूर मिल जाएगा
खाने को।
गर्मी बहुत है,
और तुम्हें नीद आ रही है ?
कहते हैं लोग,
इस देश में
भूख से नहीं मरता कोई।
आता है कोई फरिश्ता
आसमाँ से जमीन पर,
दे जाता है चुपचाप
भोजन और पानी,
वो आ रहा होगा माँ…
वो आ रहा होगा।

नहीं!
अब ये झूठ है,
धूप जल रही है
फरिश्ता मजदूर नहीं है।
वह महल में होगा
या बहक कर
चला गया होगा,
दूसरे किसी रास्ते
रेल की तरह॥

परिचय-दीपक शर्मा का स्थाई निवास जौनपुर के ग्राम-रामपुर(पो.-जयगोपालगंज केराकत) उत्तर प्रदेश में है। आप काशी हिंदू विश्वविद्यालय से वर्ष २०१८ में परास्नातक पूर्ण करने के बाद पद्मश्री पं.बलवंत राय भट्ट भावरंग स्वर्ण पदक से नवाजे गए हैं। फिलहल विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।आपकी जन्मतिथि २७ अप्रैल १९९१ है। बी.ए.(ऑनर्स-हिंदी साहित्य) और बी.टी.सी.( प्रतापगढ़-उ.प्र.) सहित एम.ए. तक शिक्षित (हिंदी)हैं। आपकी लेखन विधा कविता,लघुकथा,आलेख तथा समीक्षा भी है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कविताएँ व लघुकथा प्रकाशित हैं। विश्वविद्यालय की हिंदी पत्रिका से बतौर सम्पादक भी जुड़े हैं। दीपक शर्मा की लेखनी का उद्देश्य-देश और समाज को नई दिशा देना तथा हिंदी क़ो प्रचारित करते हुए युवा रचनाकारों को साहित्य से जोड़ना है।विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा आपको लेखन के लिए सम्मानित किया जा चुका है।

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