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माँ,तू कितनी अच्छी है…

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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‘अन्तर्राष्ट्रीय मातृत्व दिवस’ १० मई विशेष……….


`माँ’ कितना कुछ छुपा है इस एक छोटे से शब्द में,माँ मतलब पूरी दुनिया,औऱ दुनिया मतलब माँl जब एक छोटा-सा बच्चा माँ के आँचल में छुप कर सोता है तो उसे किसी जन्नत से कम नहीं लगता। इस `तालाबन्दी` के दौरान में भी एक छोटी बच्ची बन गयी हूँl मेरे बचपन की कितनी बातें माँ मुझसे करती,मैं बहुत हँसती और मुझसे ज्यादा माँ। घण्टों फोन पर न जाने कितने ही अनगिनत किस्से मुझे सुनाती। माँ इस समय मुझसे दूर भोपाल में है और मैं इंदौर में,पर इस तालाबंदी में घर रहते हुए मैंने जाना कि कितना कुछ रह गया था माँ के ह्दय में मुझे बताने के लिएl हमारा रिश्ता ऐसा,जैसे भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा हो। हमारे बीच इस समय एक अदभुत रिश्ते ने जन्म ले लिया,वह रिश्ता था मित्रता का। इस दौरान मैंने जाना कि माँ में कितना कुछ ऐसा था,जिससे में अछूती थी। अपनी व्यस्ताओं के रहते माँ से कभी इस ठहराव से बात ही नहीं कर पायी थीं,जैसे अब करती हूँl मैंने उनसे कितने ही व्यंजनों को इस दौरान सीखा,जो वो बेहतर बनाती थी। रोज `वीडियो कॉल` पर मुझे कितने वेद और पुराणों की रोचक कथाएँ सुनाती हैं। उनके बचपन के वो किस्से,जो शायद किसी को नहीं पता कि,किस तरह वो नर्मदा में शिकारा चलाते हुए पकड़ी गई और नाना जी ने उनकी पिटाई की थीl घंटों इस तरह के अपने बचपन के किस्से सुनाकर बहुत खिलखिला कर हँसते हुए पहली बार देख रही हूँl ७६ साल की इस उम्र में उन्हें आज भी नई चीजों को सीखने का कितना शौक,यह मैंने अब जाना हैl ग्रामीण परिवेश और कम पढ़ी-लिखी होने के बावजूद भी रिश्तों की कितनी मजबूत पकड़ थी उन्हें,हैरान हूँ। मुझे इस अवकाश के दौरान माँ के रूप में बहुत अच्छी दोस्त मिली,जो मेरी कितनी समस्याओं को सुलझाने में मददगार साबित हुई है।
रोज सुबह मुझे जल्दी टहलने और प्राणायाम के लिए उठाती हैl फिर मेरे साथ वो भी वीडियो काल पर आसन-प्राणायाम करती हैं।
पिता के जाने बाद इतना खुश अब उन्हें देख रही हूँl इस दौरान मुझे अनुभव हुआ कि मैंने इतने सालों में कितना-कुछ छोड़ दिया था,जिसे माँ ने वापस मुझे लौटा दिया। सचमुच एक माँ की भूमिका में आप हमेशा सर्वश्रेष्ठ रही हैं।
अपनी व्यस्ताओं के चलते रिश्ते कितने बेजान हो गए थे,माँ ने उन्हें इन दिनों में वापस जीवंत कर दिया। आपने मुझे सदैव भावनाओं से पोषित किया, जीवन में आने वाले सभी व्यक्तियों को सम्मान एवं उनके सुविचारों को ग्रहण करना कितना आवश्यक है-यह मैंने माँ से ही इस दौरान बड़ी गहराई से समझा। सही मायनों में नारी के विभिन्न स्वरूपों को आपको देख कर ही जाना और उसकी गूढ़ समझ वहीं से पैदा हुईl आपके आशीर्वाद और अनंत प्रेम के सागर में मुझे काफ़ी लंबे समय तक गोते लगाने का अवसर मिलता रहे,उस परमात्मा से यहीं प्रार्थना है। खुश रहना माँ,`हैप्पी मदर्स-डेl`

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।

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