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माँ,मुझे माफ कर दो…

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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‘अन्तर्राष्ट्रीय मातृत्व दिवस’ १० मई विशेष……….


माँ के बार-बार मना करने के बाद भी एक दिन लोकेश के मामा ने अपनी बहन को मोबाइल फ़ोन उपहार स्वरुप दे दिया। अब मोबाइल फ़ोन हाथ में पकड़ कर माँ उलझन में पड़ गयी,क्योंकि उन्हें तो मोबाइल के बारे में कुछ भी पता नहीं था। काफी कोशिश की,लेकिन कुछ समझ नहीं आया,तो सोचा लोकेश जब शाम को घर आएगा तो पूछ लूंगी।
शाम को लोकेश ने भी बड़े ही प्यार से माँ को मोबाइल इस्तेमाल करने के तरीके समझा दिए। माँ भी खुश लग रही थी कि चलो अब जब चाहे जिससे बात कर पाएगी। सुबह जब लोकेश ऑफिस चला गया तो वो मोबाइल ले बैठ गयी,सोचा अपने भाई से बात करती हूँ,लेकिन जैसे ही मोबाइल हाथ में आया तो वो उसे कैसे चलाना है,सब भूल गयी। बहुत से बटन दबा के देखे,लेकिन मोबाइल महाशय चालू ही नहीं हुए। सोचा,आज फिर लोकेश से पूछूँगी।
शाम को फिर लोकेश ने उन्हें समझा दिया और अभ्यास करने को कहा। अपने सामने सब बटनों के उपयोग भी बता दिए,मगर अगले दिन माँ ने जब मोबाइल हाथ में फिर पकड़ा तो वो चालू तो हो गया,लेकिन वो फिर भूल गयी कि नम्बर कैसे मिलाएँ। काफी कोशिश के बाद भी जब किसी से बात नहीं हुई,तो सोचा आज फिर लोकेश से समझना पड़ेगा।
शाम को जब फिर उन्होंने मोबाइल सिखाने की बात की तो लोकेश को गुस्सा आ गया,बोला,-“कितनी बार समझा दिया,अब क्या रोज़-रोज़ यही करता रहूँ।” और गुस्से में अपने कमरे में चला गया।
माँ को ये सुन बहुत दुःख हुआ,लेकिन चुप रह गयी। कुछ देर बाद माँ के मोबाइल की घंटी बजने लगी। माँ ने उठा तो लिया,लेकिन समझ नहीं आया कि किस बटन को दबाने से बात कर पाएगी। काफी देर जब घंटी बजती रही,तो लोकेश कमरे से निकला और माँ के हाथ से मोबाइल ले बात करने लगा।
`हैलो`… लोकेश के मामा का फ़ोन था।
“अरे मामा,तुमने मुझे कहाँ फंसा दिया। माँ दिन भर मेरा दिमाग ख़राब कर देती है। कितनी बार तो समझा दिया कि मोबाइल को कैसे इस्तेमाल करना है,लेकिन उन्हें समझ ही नहीं आता।”
मामा ने भी हँसते हुए दुबारा समझाने को कह दिया। मामा-भाँजे में बातचीत तो ख़त्म हो गयी,फ़ोन भी बंद हो गया।
अभी लोकेश अपने कमरे में जाने को मुड़ा ही था कि माँ ने कहा,-“शाबाश बेटा,शाबाश। अब मेरी नासमझी की बातें तुझे चुभती है। दो बार मोबाइल के बारे में बता कर तू समझता है,तू फँस गया और मामा से शिकायत करने लगा। जब तू छोटा था और बार-बार गिरता था,तो मैंने तो हमेशा ही प्यार से चलना सिखाया,कभी किसी से शिकायत नहीं की। हमेशा रात सोते हुए डर कर उठ जाता था,तो हमेशा मैं ही तुझे दुबारा सुलाती थी,लेकिन मैंने तो कभी नहीं सोचा कि मैं फँस गयी।” ये सब कह माँ की आँखों में आँसू आ गए।
लोकेश तो हैरान-सा मुँह फाड़े माँ को देख रहा था। कुछ बोल तो नहीं पाया,बस आगे बढ़ माँ को आगोश में ले रो पड़ा। कुछ देर बाद उसके मुँह से कुछ शब्द निकले।
“माँ,मुझे माफ़ कर दो,मैंने गलती से आपका दिल दुखाया है। आपका प्यार तो मेरे लिए दुनिया का सबसे बड़ा उपहार है।”
(विशेष-माता-पिता का प्यार बहुत ही भाग्यशाली लोगों को मिलता है,लेकिन जब उनकी उम्र बढ़ जाए तो उन्हें उतना ही प्यार करना हर बच्चे का कर्त्तव्य है। सिर्फ दिखावे के लिए नहीं,दिल से उनको प्यार दें,सेवा करें।”)

परिचय-गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

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