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मातृभाषा हिंदी:एक सकारात्मक संदेश

नमस्ते श्री गुप्ता जी,

मैं अपनी व्यक्तिगत राय पेश करना चाहता हूँ आपके सामने अपनी मातृभाषा ‘हिन्दी’ को लेकर। पहले-पहले जैसे मैंने हिन्दी के अनुच्छेदों (पैराग्राफ) को पढ़ने का प्रयास किया तो मुझे बड़ी कठिनाई होती थी,पर अब मुझे ठीक-ठाक महसूस होता है,जैसे-जैसे मैं हिन्दी में अधिक से अधिक तत्व (घटक या कन्टेन्ट)को पढ़ता चला जा रहा हूँ। पहले के २-३ महीनों में आपको कठिनाई होगी,पर ६ महीनों के बाद आपको हिन्दी पढ़ने में मज़ा आने लगेगा और यह निरन्तर प्रयास का परिणाम है।
हमें अपनी आने वाली नस्लों में हिन्दी भाषा में पुस्तकें पढ़ने की आदत उत्प्रेरित (इण्ड्यूस) करनी होगी।
मैंने दूसरी बात ये नोटिस की कि मेरी प्रसंस्करण शक्ति(प्रोसेसिंग पॉवर) भी तीव्र हुई है। अगर मैं हिन्दी को प्रतिदिन अपनी जीवनशैली और दिनचर्या में अपना लूँ तो मैं कम से कम समय में हिन्दी में प्रवीणता प्राप्त कर लूँगा। इस बात का अनुभव मुझे पहले कभी नहीं हुआ। हमें वाकई में सब-कुछ अपनी भाषा में ही करना चाहिए,क्योंकि ऐसा करने से हमारी स्मरण शक्ति और प्रसंस्करण(प्रक्रिया) शक्ति दोनों में कुशाग्रता आती है।

धन्यवाद।
   रवीश रावत

उत्तर

बंधुवर रावत जी,नमस्कार।

आपको इस बात के लिए बधाई व साधुवाद कि आप निरन्तर प्रयास से अपनी मातृ-भाषा हिंदी पढ़ने में सहज हो गए हैं और उसका आनन्द भी लेने लगे हैं। यदि आप अपने ज्ञान-अनुभव व रुचि से मातृभाषा,हिंदी अथवा भाषा जैसे विषयों पर कुछ लेख लिख सकते हैं,जो युवा पीढ़ी को प्रेरित कर सकें। सामाजिक मीडिया के माध्यम से इन्हें साझा किया जा सरता है तथा पोर्टल आदि पर प्रकाशित हो सकते हैं।
हिंदी सहित भारतीय भाषाओं के प्रसार की दृष्टि से आप देश की उत्पादक कंपनियों को उत्पाद पर दी गई जानकारी ग्राहक-हित में जनता की भाषा में देने का अनुरोध कर सकते हैं। प्रत्येक उत्पाद पर कम्पनी का ई-मेल दिया होता है। वे ई-मेल,वैश्विक हिंदी सम्मेलन पर साझा किए जा सकते हैं। अखबारों व चैनलों को लिख सकते हैं कि वे हमारी भाषा के चलते-फिरते,जीवित,प्रचलित शब्दों के स्थान पर अनावश्यक रूप से अंग्रेजी शब्द स्थापित न करें।
कहने का अभिप्राय यह है कि जिस दिन इस देश के लोग अपना धर्म,साहित्य-संस्कृति,इतिहास, ज्ञान-विज्ञान और अपनी पहचान की रक्षा के लिए अपनी भाषा को बचाने के लिए खड़े हो जाएँगे,तो ही कुछ बचा सकेंगे। अन्यथा हजारों वर्ष की कमाई कुछ वर्षों में समाप्त हो जाएगी। इसलिए यह आवश्यक है कि हर भारतवासी अपने स्तर पर अपने तरीके से इसके लिए अधिकाधिक प्रयास कर और उन्हें साझा भी करे। वैश्विक हिंदी सम्मेलन की ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ।
                डॉ.एम. एल. गुप्ता

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