कुल पृष्ठ दर्शन : 202

भैया,जरा धीरे चलो…

सुनील चौरसिया ‘सावन’
काशी(उत्तरप्रदेश)

***********************************************

ज़िंदगी अनमोल है,इसको सुरक्षित रखना हमारा मानवीय कर्तव्य है। जीवन और सड़क का आदिकाल से ही अटूट रिश्ता है। प्रतिदिन सड़कों से असंख्य जिंदगियाँ गुजरती हैं,अतः हमारी जिंदगी तभी सुरक्षित है जब सड़कें सुरक्षित हैं। आजकल तो सड़कों पर ऐसी-ऐसी दुर्घटनाएँ दिखती हैं कि रोम-रोम सिहर जाता है। गलती करता है कोई एक,और जानें जातीं हैं अनेक।जानें कितने सुहाग मिट जाते हैं,बहनें राखी के दिन थाल में रक्षा सूत्र लेकर सिसकने के लिए मजबूर हो जाती हैं। “सातों जन्म तक साथ निभाएँगे” का वादा भी एक ही दुर्घटना से पलभर में मटियामेट हो जाता है। यदि हमने सड़क सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया तो अनगिनत सपने साकार होने से पूर्व ही शीशे के महल की भांति चकनाचूर हो जाएँगे।
सड़क दुर्घटना में बेकसूर लोग बेमौत मरते हैं,जो जघन्य अपराध है,महापाप है और है निंदनीय भी। जग में कौन है,जो ऐसा अपराधी बनना चाहेगा। कोई नहीं,लेकिन जाने-अनजाने में हम सब ऐसा अपराध कर निरपराध को पंचतत्व में मिलाने को उतावले रहते हैं। जब भी हम वाहन चलाते हैं तब हवा से बातें करने लगते हैं। रफ्तार देखकर ऐसा लगता है मानों गाड़ी वायुयान बन कर गगन में उड़ेगी। कुछ बहादुर चालक तो भीड़ देखकर और जोश में आ जाते हैं। जोश में होश खोना भयंकर भूल है। सबसे भयावह स्थिति तो तब बन जाती है,जब एक चालक शराब पीकर यात्रियों से उलझते हुए वाहन चलाता है।
शिक्षक,चिकित्सक और चालक; इन तीनों के हाथों में अनगिनत ज़िंदगियाँ होती हैं,अनगिनत सपने होते हैं,वर्तमान होता है और होता है भविष्य। जब ये अपना संतुलन खोते हैं तब देश और समाज का संतुलन स्वतः बिगड़ जाता है।
यदि सड़क सुरक्षा की बात करें तो यह जन-जन की जिम्मेदारी है कि सब स्वयं को सावधान और सचेत रखें। कभी भी अपरिपक्व व्यक्ति को गाड़ी चलाने का सुझाव न दें। यहाँ तक कि बच्चों को भी गाड़ी न चलाने दें। उनकी एक नादानी से अनेक हँसते-खिलखिलाते परिवारों में चीख-पुकार गूंज उठती है। मृत्यु,तांडव नृत्य करने लगती है और फफकते आँसूओं का महासागर उमड़ने लगता है।
बच्चों के हाथों में वाहन की चाबी थमाना यानी यम लोक से मृत्यु को आमंत्रित करना है। बच्चों की एक गलती से,एक शरारत से,एक नासमझी से…मुस्कुराती हुई हरी-भरी धरती लाल यानी रक्त-रंजित होकर छटपटाने लगती है।
यातायात के नियमों का पालन करके हम विश्व की अनमोल ज़िन्दगियों को सुरक्षित रख सकते हैं। हमें हमेशा सड़क की बायीं ओर ही चलना चाहिए। आम तो आम,खास लोगों को भी यातायात प्रकाश या संकेतक (ट्राफिक लाईट) एवं रंगों की सही जानकारी नहीं रहती है,और वे जाने-अनजाने में गलतियाँ कर बैठते हैं,जिससे बड़े हादसे हो जाते हैं,एवं सजे-धजे नीड़ उजड़ जाते हैं। अतः,देश के हर नागरिक को प्रकाश एवं रंगों का मतलब कुछ इस तरह बताएं व समझाएं-
#लाल रंग-लाल रंग का संकेत है-“रुकिए, आगे खतरा है।” अन्य रंगों की अपेक्षा यह रंग बहुत ही ज्यादा गाढ़ा होता है जो दूर से ही दिखने लगता है।ये हमारी आँखों(रेटिना)पर ज्यादा प्रभाव छोड़ता है।
#पीला रंग-यह रंग संकेत देता है-“अब चलना है,तैयार हो जाओ।” यह रंग ऊर्जा और सूर्य का प्रतीक है।
#हरा रंग-इस रंग का संकेत है-“आराम से वाहन को आगे बढ़ाएं।” यह रंग प्रकृति और शांति का प्रतीक है,जो आँखों को सुकून पहुंचाता है। यह खतरे के बिल्कुल विपरीत है।
बात सिर्फ यही है कि यदि सड़क सुरक्षा से सम्बन्धित नियमों पर ध्यान न दिया गया तो देखते ही देखते स्थिति भयावह हो जाएगी। कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देकर हम इन हादसों से बच सकते हैं-
▶वाहन चलाते वक्त मोबाईल का प्रयोग न करें। दर्पण में चेहरे के हाव-भाव न देखें। न बाल संवारें,न ही मेक-अप करें।
▶नन्हें-मुन्ने बच्चों को अकेले सड़क पर न छोड़ें।
▶पशुओं की वजह से प्रतिदिन हजारों हादसे होते हैं। अतः,उन्हें सड़क पर न आने दें,चाहें वो पालतू हों या फ़ालतू।
▶गाड़ी चलाते वक्त ज्यादा वार्तालाप न करें।
▶वाहन की गति पर नियंत्रण रखें।
▶नशे में कभी भी वाहन न चलाएं।
▶यातायात के नियमों का पालन न करने वालों पर तत्काल कानूनी कारवाई करें।
▶वाहन चलाते वक्त ख्वाबों की दुनिया में न खोएं।
अनपढ़ तो अनपढ़ हैं,पर पढ़े-लिखे लोग भी बहुत कुछ पढ़ नहीं पाते हैं। जैसे-“दुर्घटना से देर भली…ये जरा बच के…सावधानी हटी,दुर्घटना घटी…स्वयं सुरक्षित रहो और सबको सुरक्षित रखो…सड़क सुरक्षा हमारा नैतिक और मानवीय कर्तव्य है…यातायात के नियमों का पालन करो आदि-आदि। बहुत से लोग तो बिना हेलमेट के गाड़ी चलाकर खुश रहते हैं। यातायात के नियमों की धज्जियाँ उड़ाकर और पुलिस को चकमा देकर फूले नहीं समाते हैं,लेकिन जिस दिन एक छोटी- सी दुर्घटना में सिर में चोट लगने के कारण प्राण पखेरू उड़ जाते हैं,एवं हँसता-खेलता परिवार आँसूओं के महासागर में डूब जाता है,उस दिन ही हेलमेट का महत्व समझ में आता है। इसलिए,यही सुझाव कि जब भी गाड़ी चलाएं तो अपने चंचल मन को समझाते हुए अवश्य कहें-“ए भैया,जरा धीरे चलो। सावधानी हटी,दुर्घटना घटी।”

परिचय : केन्द्रीय विद्यालय टेंगा वैली अरुणाचल प्रदेश में बतौर स्नातकोत्तर शिक्षक हिंदी एवं एसोसिएट एनसीसी अधिकारी पद पर सेवा प्रदान कर रहे सुनील चौरसिया ‘सावन’ की जन्मतिथि-५अगस्त १९९३ और जन्म स्थान-ग्राम अमवा बाजार(जिला-कुशी नगर, उप्र)है। कुशीनगर में हाईस्कूल तक की शिक्षा लेकर बी.ए.,एम.ए.(हिन्दी)सहित वाराणसी से बीएड भी किया है। इसके अलावा डिप्लोमा इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन,एनसीसी, स्काउट गाइड,एनएसएस आदि भी आपके नाम है। आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन,लेखन,गायन एवं मंचीय काव्यपाठ है,तो सामाजिक क्षेत्र में नर सेवा नारायण सेवा की दृष्टि से यथा सामर्थ्य समाजसेवा में सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,कहानी,लघुकथा,गीत, संस्मरण,डायरी और निबन्ध आदि है। अन्य उपलब्धियों में स्वर्ण-रजत पदक विजेता हैं तो राष्ट्रीय एवं विश्व भोजपुरी सम्मेलन के बैनर तले मॉरीशस, इंग्लैंड,दुबई,ओमान और आस्ट्रेलिया आदि सोलह देशों के साहित्यकारों एवं सम्माननीय विदूषियों-विद्वानों के साथ काव्यपाठ एवं विचार विमर्श शामिल है। एक मासिक पत्रिका के उप-सम्पादक भी हैं। लेखन का उद्देश्य ज्ञान की गंगा बहाते हुए मुरझाए हुए जीवन को कुसुम-सा खिलाना,सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार कर सकारात्मक सोच को पल्लवित-पुष्पित करना,स्वान्त:सुखाय एवं लोक कल्याण करना है। श्री चौरसिया की रचनाएँ कई समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।

Leave a Reply