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नया उजास

सुरेश चन्द्र सर्वहारा
कोटा(राजस्थान)
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आज समय भी बदल रहा है
पकड़ तेज रफ्तार,
नहीं रहा अब आपस में भी
पहले जैसा प्यार।

खत्म हो गया भाईचारा
फैल रहा है द्वेष,
करुणा और दया के भी अब
भाव रहे ना शेष।

छोड़ मनुजता आज हो गया
मानव हिंसक क्रूर,
जीव सभी अब उससे डरकर
भाग रहे हैं दूर।

नव विकास के साथ मिले हैं
भौतिकता के रोग,
मनुज-बुद्धि का अब विनाश में
होता है उपयोग।

आज आदमी के सिर ऊपर
कैसा चढ़ा जुनून,
बहा रहा है बात-बात पर
वह औरों का खून।

बना दिया है आज धर्म को
नफरत का हथियार,
राजनीति भी चढ़ा रही है
इस पर पैनी धार।

सत्ता-मद में डूब रहा है
सारा ही नेतृत्व,
शोषक चाह रहा है करना
‘साधन’ पर स्वामित्व।

सभी दिशाओं में हिंसा का
होता तांडव-नृत्य,
निर्भय होकर आज कर रहे
लोग अनैतिक कृत्य।

देते हैं आतंकी नित ही
मानवता को घाव,
हर मानव जी रहा आजकल
मन में लिए तनाव।

अवसर अब भी पास हमारे
चलें सभी मिल साथ,
अगर निकल यह समय गया तो
मलने होंगे हाथ।

सोचें हम इन हालातों में
कैसे हो बदलाव,
अखिल विश्व में कैसे फैले
शान्ति प्रेम सद्भाव।

मानवता में व्यक्त करें हम
फिर से दृढ़ विश्वास,
तब ही सूरज ला पाएगा
जग में नया उजास॥

परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैL जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैL आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैL प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंL आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैL

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