कुल पृष्ठ दर्शन : 334

You are currently viewing समय निकलता जाए

समय निकलता जाए

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
***************************************************

क्या तुझको देंगे यह संबल ?
नयन कोर से अश्रु झर-झर
जीवन डोर नहीं है लंबी,
समय निकलता जाए सर-सर।

सबकी अपनी-अपनी उलझन,
सबके अपने-अपने द्वंद
लक्ष्य से जूझ रहा है कोई,
जी रहा कोई निर्द्वन्द
शीश झुकाए चल रे राही,
बन के दिखलाना है तरुवर।
जीवन डोर नहीं है लंबी,
समय निकलता जाए सर-सर…।

जग हँसता है तू भी हँस ले,
हँसते-हँसते तू भी चल दे
हार-जीत जीवन का झमेला,
रुक न,मस्त मगन तू चल रे
बाहुबली बना ले स्वयं को,
हाथों में उठा ले तू गिरवर।
जीवन डोर नहीं है लंबी,
समय निकलता जाए सर-सर…॥

अश्रु कोई काम न आते,
बहते-बहते थम जाएंगे
हौंसले से कदम बढ़ा चल,
दु:ख के बादल छंट जाएंगे
जीवन में निकलेगा सूरज,
देगा उजाला झोली भर-भर।
जीवन डोर नहीं है लंबी,
समय निकलता जाए सर-सर…॥

मेहनतकश की हार नहीं है,
बस मन को करना है वश में
लक्ष्य समझना है जीवन का,
सब पगले! तेरे तरकश में
चढ़ा प्रत्यंचा कर संधान,
अच्छा ही करेगा वो गिरधर।
जीवन डोर नहीं है लंबी,
समय निकलता जाए सर-सर…॥

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

Leave a Reply