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नई मंजिलें

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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नयी मंजिलें हैं नये काफिले हैं।
सभी दूर राहों में उलझे मिले हैं॥

यही है वो बस्ती जहां से चले थे,
वहीं एक घर में सभी हम पले थे।
पुराना जमाना कहाँ खो गया है,
बनाते दिखें सब हवा में किले हैं॥
नयी मंजिलें हैं,नये काफिले हैं…

वो सस्ती दुकानें कहाँ गुम हुई हैं,
वो मस्ती मचानें कहाँ गुम हुई हैं।
हमें वक्त की बद्दुआ लग गयी है,
सगे कोख रिश्ते बने फासले हैं॥
नयी मंजिलें हैं नये काफिले हैं…

जो बच्चे थे अब वो बड़े हो गए हैं
वो पैरों पे अपने खड़े हो गए हैं।
हमें देख कर भी न चौकें जरा से,
नया है जमाना नये सिलसिले हैं॥
नयी मंजिलें हैं नये काफिले हैं…

कहीं शुष्क मौसम कहीं तेज धारा,
कहीं बाढ़ आयी कहीं शीत पारा।
बदलता ये मौसम चुनौती भरा है,
नदी रो रही है किनारे हिले हैं॥
नयी मंजिलें है नये काफिले हैं…

कहाँ से चले थे कहाँ आ गए हैं,
हवा धूप पानी सभी खा गए हैं।
अभी भी समय है ये दुनिया बचा लो,
लिखा गीत ‘हलधर’ नहीं चुटकुले हैं॥
नयी मंजिलें हैं नये काफिले हैं…

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