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समंदर का दर्द

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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समंदर दर्द अपना हर किसी से कह नहीं सकता।
करोड़ों मील में फैला मगर वो बह नहीं सकता।

तमन्ना यह लिए वो जा बसा मज़लूम आँखों में,सिमटकर बूँद होने की सजा भी सह नहीं सकता।

बड़ा आकार में लेकिन नहीं अहसास यह उसको,
फँसे जलयान को तूफान में वो गह नहीं सकता।
ज़रूरत हो भले कितनी भी जल की रेगजारों में,
हिमालय की मदद के बिन वहां भी ढह नहीं सकता।

पहाड़ों से चलीं नदियाँ उसे ढांढस बँधाने को,
रहेंगी साथ उसके वो अकेला रह नहीं सकता।

किसी दिन ए समंदर झांक ले ‘हलधर’ दरीचे में, 
हुए जज़्बात जम पत्थर उन्हें भी तह नहीं सकता॥

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