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नव वर्ष-२०२१

सुरेश चन्द्र सर्वहारा
कोटा(राजस्थान)
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नए वर्ष की नई भोर
फिर मुस्काई है,
स्वागत को नव किरण-थाल
लेकर आई है।

ढुलक पड़ी है पूरब से
मधुरस की गागर,
व्योम विहँसता आज नई
आभा को पाकर।

ताल-ताल में कमल खिले
हर्षित हैं तरुवर,
क्षितिज छू रहे पक्षी गण
नव ऊर्जा से भर।

मानव भी नव आशा ले
नव पथ पर बढ़ता,
कल के सुन्दर सपनों को
कर्मों से गढ़ता।

चाह लक्ष्य की मानव को
गतिशील बनाती,
जग को नव उत्कर्षों का
नित राग सुनाती।

नए वर्ष की अरुण आभ
जन-मन में छाए।
मानवता का मूल तत्त्व
मानव फिर पाए॥

परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैL जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैL आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैL प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंL आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैL

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