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बनो नहीं पत्थर

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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सामाजिक सम्बन्ध और दूरी स्पर्धा विशेष………..


पत्थर से दिल मत लगा,ये तो है बेजान।
ऐसे ही रहते यहाँ,मूरख बन इंसान॥

हे मानव पत्थर नहीं,कोमल हृदय सुजान।
मृदु वाणी भाषा सरल,होना कर्म प्रधान॥

ठोकर खाना जिंदगी,बच के रहना आप।
मानव की पहचान क्या,नहीं पता है माप॥

बाहर से पत्थर भले,अंदर प्रेम सुजान।
कोमल सबका चित्त हो,मानव बनो महान॥

वर्तमान है आपका,ये सारा संसार।
बनो नहीं पत्थर यहाँ,कर लो सबसे प्यार॥

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