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नहीं कोई तेरा घर

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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नैहर से जब विदा हुई पिताश्री ये बोले-
“हुआ पराया ये घर,ससुराल ही तेरा घर है।”
सासू मेरी एक दिन मुझसे रोष में बोली,-
“क्या दहेज में थी लाई,जो तेरा घर है।”
पतिदेव भला पीछे क्यों रहते गर्व से बोले,-
“मेरे नाम ही है रजिस्ट्री यह मेरा घर है।”

सारा जीवन तिल-तिल जल के दीप बनी मैं,
इतने संघर्षों में हरदम रही डटी मैं
धुंधली दृष्टि,जर्जर तन से त्रस्त होकर,
सबके सुख-दु:ख में सारी रात जगी मैं
आज सभी ने किया पराया, ‘नहीं कोई तेरा घर है।’
सबके अपने-अपने घर हैं,कौन-सा घर मेरा घर है।

दुखी देखकर अंतस बोला,-“अरे बावली क्यों उदास है ?
घर होता है नहीं किसी का,कोई साथ ना ले जाएगा,
खाली हाथ सभी जाएंगे,घर है खाली रह जाएगा
घर होता है घरवालों से,मिल-जुल कर सब रहें।
तभी घर होता घर है,नहीं तो घर होता खंडहर है,”
यही सत्य है,तत्व बोध है,वेद कथन है॥

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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