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नहीं बनना मुझे निरर्थक

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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सुबह-सवेरे
अलसाई-सी मैं,
ज्यों ही खोला दरवाजा
दरवाजे के पास पड़ा,
एक फूल था प्यारा।
बेहद सुंदर फूल,
इधर-उधर नजर दौड़ाई…
लेकिन कोई काम न आई।
फिर सोचा-
तुलसी के गमले बिठा दूं,
भगवन् के चरणों में सजा दूं
या अपनी वेंणी में लगा लूं!
उसने मेरे अंतर्मन की बात जान ली,
और वह बोला-
नहीं चाहिए मुझको तुलसी जी का साथ,
न ईश्वर के श्री चरणों में निवास।
अपनी वेंणी में सजा न लेना,
हो सके तो बस इतना कर देना।
‘कोरोना’ संकट की घड़ी में,
जो कर रहा सुरक्षा कर्तव्य के साथ
अपने परिवार से दूर रह निभाए,
देश की रक्षा का भार।
जिसकी हर साँस देश को अर्पित है,
जो हर घड़ी देश के लिए समर्पित है
उस कर्मवीर को मेरा अभिवादन कहना,
उसके हाथों में मुझको सम्मान से देना
या उसके पैरों तले रंगोली बना देना,
उसमें मुझे सजा देना।
मेरा छोटा-सा जीवन,
बन जाए सार्थक
मुझे जीवन का अर्थ चाहिए,
नहीं बनना मुझे निरर्थक॥

परिचयराजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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