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अब बचा नहीं कुछ गंवाने को

गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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कोई पीता गम भुलाने को,
कोई पीता समय बिताने को।
दो घूंट पिला दे साकी,
अब बचा नहीं कुछ गंवाने को।
मैं शराबी पी गया एक बार शौक में,
बोतल हर रोज फिर सपने में आयी बुलाने को।
मैं उसको पीता गया,वो मुझको पीती गई,
छूटा परिवार,अब छत नहीं सर छुपाने को।
अपनों ने ठुकरा दिया,मालिक ने
निकाल बाहर किया,
काम नहीं अब खाने-कमाने को।
पीने में है शान समझ,शराबी बन बैठा,
अंग-अंग नशा चढ़ गया,बाकी न कुछ चढ़ाने को।
बिकी चैन,फिर घड़ी बिक गई,
बेच दी किडनी,हमने बोतल नशा चढ़ाने को।
मैं शराबी,अब न बाकी,
कुछ और गंवाने कोll

परिचय–गीतांजली वार्ष्णेय का साहित्यिक उपनामगीतू` है। जन्म तारीख २९ अक्तूबर १९७३ और जन्म स्थान-हाथरस है। वर्तमान में आपका बसेरा बरेली(उत्तर प्रदेश) में स्थाई रूप से है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली गीतांजली वार्ष्णेय ने एम.ए.,बी.एड. सहित विशेष बी.टी.सी. की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में अध्यापन से जुड़ी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत महिला संगठन समूह का सहयोग करती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,कहानी तथा गीत है। ‘नर्मदा के रत्न’ एवं ‘साया’ सहित कईं सांझा संकलन में आपकी रचनाएँ आ चुकी हैं। इस क्षेत्र में आपको ५ सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। गीतू की उपलब्धि-शहीद रत्न प्राप्ति है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्यिक रुचि है। इनके पसंदीदा हिंदी लेखक-महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद,कबीर, तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। लेखन में प्रेरणापुंज-पापा हैं। विशेषज्ञता-कविता(मुक्त) है। हिंदी के लिए विचार-“हिंदी भाषा हमारी पहचान है,हमें हिंदी बोलने पर गर्व होना चाहिए,किन्तु आज हम अपने बच्चों को हिंदी के बजाय इंग्लिश बोलने पर जोर देते हैं।”

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