बोधन राम निषाद ‘राज’
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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होली-
होली की अब धूम है,खेले राधे श्याम।
बरसाना की कुंज में,ग्वाल बाल बलराम॥
रँगीला-
श्याम रँगीला साँवरा,राधा रानी संग।
भर पिचकारी मारते,भीगे सारी अंग॥
अबीर-
रंग अबीरा ले चले,खेले होली फाग।
नंद गाँव के छोकरे,छेड़े प्रियतम राग॥
उत्सव-
उत्सव की अब धूम है,मन में है उल्लास।
राग रंग है हर तरफ,साजन सजनी पास॥
शर्मिंदा-
शर्मिंदा से दूर हो,काम करो तुम नेक।
जग में होगा नाम फिर,हो लाखों में एक॥
मर्यादा-
मर्यादा में आप भी,खेलो होली रंग।
पावन यह त्योहार है,मचे नहीं हुड़दंग॥
पलाश-
खिलता हुआ पलाश ये,दहके ज्यों अंगार।
प्रेम अगन तन में लगे,झूम उठे संसार॥
नगाड़ा-
बजे नगाड़ा फाग के,नाचे सब दे ताल।
नर नारी पागल हुये,फेंके रंग गुलाल॥
आतुर-
आतुर मन है बावरी,मिलने को बेचैन।
पिया मिलन की चाह में,भटके हैं दिन रैन॥
संदेश-
होली का यह पर्व तो,देता है संदेश।
भाई चारा साथ हो,सुन्दर हो परिवेश॥