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समाज के प्रति हमारा कर्तव्य जरुरी

उमेशचन्द यादव
बलिया (उत्तरप्रदेश) 
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सामाजिक सम्बन्ध और दूरी स्पर्धा विशेष………..


संपूर्ण जीव-जगत में मनुष्य को ही सर्वश्रेष्ठ जीव माना जाता है,और मनुष्य ने अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन से यह सिद्ध भी कर दिया है कि इस धरा पर उसके जैसा ज्ञानी और समर्थ दूसरा कोई जीवधारी नहीं है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज से अलग रहकर मनुष्य का कोई अस्तित्व नहीं है। समाज के बिना हमारा जीवन अधूरा और नीरस हो जाएगा,इसलिए हमें एक-दूसरे के साथ मिलकर ही रहना चाहिए। एक बात और है जो अति महत्वपूर्ण है,इसलिए हम समाज में रहते हैं। वह बात है-मनुष्य अकेले अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता है। अतः उसे समाज में रहना पड़ता है। यह बात भी सही है कि हमें जीने के लिए जितनी चीजों की आवश्यकता है,वे सारी चीजें हमारे पास उपलब्ध नहीं होती हैं। हमारे पास कुछ चीजों की कमी होती है तो कुछ चीजों की अधिकता भी होती है। जो चीज हमारे पास अधिक होती है,हम उसे किसी जरूरतमंद को दे देते हैं और अपनी जरूरत की वस्तु उससे लेकर अपना काम चलाते हैं। इस प्रकार हमारी आवश्यकता और वस्तुओं के आदान-प्रदान के माध्यम से एक समाज का निर्माण हो जाता है और हमारा जीवन सरस बन जाता है।
कहा जाता है कि “आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है”,हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही समाज में रहते हैं। मनुष्य जन्म तो अकेले ही लेता है और इस नश्वर शरीर का त्याग भी अकेले ही करता है। यह बात हम सब जानते भी हैं फिर भी हम मनुष्य स्वार्थवश,माया बंधन में पड़ कर एक-दूसरे के साथ जुड़े रहने में गर्व महसूस करते हैं और अगर कोई हमसे दूर हो जाता है तो अति दुखी हो जाते हैं। उस दु:ख भरे समय में यही समाज हमारा मनोबल बढ़ाता है और हमारे दु:ख को हल्का करने के लिए तरह-तरह के उपक्रम करता है। मनुष्य का समाज से अटूट संबंध है। समाज में रहकर हम तरह-तरह का ज्ञान और अनुभव सीखते हैं। सामाजिक सहयोग से हम अनेक असंभव कार्य भी आसानी से कर लेते हैं।बहुत महत्वपूर्ण बात कि,जिस समाज में रहकर हम अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं ,उस समाज के प्रति हमारा कुछ कर्तव्य भी होता है। हम सभी को समाज के प्रति कर्तव्यपरायण होना चाहिए। कुछ लोग तो हमें ऐसे भी मिलते हैं जो समाज के प्रति उदासीन होते हैं। लेने के लिए समाज में आते हैं और जब कुछ करने की बारी आती है तो समाज से मुँह मोड़ लेते हैं। अपने कर्तव्य से भागने का पूरा प्रयास करते हैं,लेकिन यह कार्य मानवोचित नहीं है। ऐसे लोगों को हमें समझाना चाहिए तथा सही रास्ते से भटके हुए लोगों का सही मार्गदर्शन करना चाहिए। हाँ,यह काम कठिन हो सकता है लेकिन समाज की भलाई और उन्नति के लिए हमें हर संभव प्रयास करना चाहिए। अनेक महापुरुषों ने कहा है कि समाज से दो ही लोग दूर रह सकते हैं-देवता या दानव,क्योंकि ये अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए सर्व समर्थ होते हैं। इसलिए इन्हें समाज में रहने की आवश्यकता ही नहीं होती है,लेकिन हम मनुष्य तो समाज के बिना अधूरे हैं। यह समाज जो हमें अच्छा संस्कार और मनोरंजन से भरा जीवन जीना सिखाता है,हर परिस्थिति में हमारी मदद करने के लिए तैयार रहता है,तो इसके प्रति हमारा भी कर्तव्य होता है।
अपने संप्रदाय और समाज के प्रति हर व्यक्ति को समर्पित होना चाहिए। समाज की सेवा के लिए हमें बहुत कुछ त्यागना पड़ता है। यहाँ तक कि,समाज की उसकी सुरक्षा के लिए हमें सामाजिक दूरी भी बनानी पड़ती है। एक बात ध्यान रहे कि अगर ऐसा करने से समाज की भलाई है तो हमें इसे सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए और अपने मित्रों को भी यह बात अच्छी तरह समझाना चाहिए । समाज के कल्याण के लिए कई परिस्थितियों में सामाजिक दूरी बनाना आवश्यक हो जाता है,जैसे-संक्रामक बीमारी के समय (कोरोना),हैजा,चेचक आदि। इस प्रकार की विकट परिस्थितियों में समाज की भलाई के लिए समाज से दूर रहना अति आवश्यक हो जाता है,जबकि ऐसा करना बहुत मुश्किल होता है,पर अगर हम सामाजिक दूरी नहीं बनाते हैं तो समस्या और जटिल हो जाएगी और बाद में हमें पछतावे के अलावा कुछ नहीं सूझेगा। जैसे आज ‘कोरोना’ विषाणु ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है,जिसकी वजह से लाखों लोगों की असामयिक मृत्यु हो गई। हमारे देश भारत वर्ष में भी इस संक्रामक बीमारी से हज़ारों लोग ग्रसित हैं और सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गए। इस जानलेवा बीमारी का अभी तक कोई इलाज नहीं है सिवाय बचाव के। यह बीमारी चीन के वुहान शहर से दिसम्बर २०१९ में शुरू हुई और तीन-चार महीने में पूरी दुनिया में इसने कहर मचा दिया है। आज धरती पर त्राहि-त्राहि मची हुई है। अनेक देशों में ‘तालाबंदी’ है,कोई कहीं जा नहीं सकता। सभी अपने घर में बैठे मंगल की कामना करते हैं। सभी धार्मिक स्थल बंद कर दिए गए हैं,ताकि लोग इकट्ठा ना हो सकें,क्योंकि इस बीमारी से बचने का एकमात्र यही तरीका है। तो आज हमरा कर्तव्य बनता है कि अपने देश-समाज ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव जाति की रक्षा के लिए हमें ‘सामाजिक दूरी’ बनाए रखना चाहिए। इस विकट स्थिति में भी हमें समाज से प्रेम रखना है,सहयोग के लिए आगे आना है लेकिन हाथ नहीं लगाना है।
यह कोई जरुरी नहीं है कि हम जिससे प्रेम करते हैं,सदा उसके साथ ही रहें। दूर रहकर भी प्रेम जताया जा सकता है,और ऐसी स्थिति में प्रेम जताना और उसे बनाए रखना प्रेम की परिपक्वता की परिभाषा है। कई बार ऐसा होता है कि हम जिसके बिना एक पल भी जीना मुश्किल समझते हैं, उसी का त्याग करना पड़ता है। जैसे अयोध्या के महाराज श्रीराम को धर्म की रक्षा के लिए अपना राज और यहां तक कि वनवास के समय अपनी पत्नी सीता से दूर रहना पड़ा। भगवान श्रीराम के भाई और धर्म के प्रतीक भरत जी ने भी अपने प्रिय और पूज्य भाई श्री राम जी से दूर रहकर उनके प्रति अपने परिपक्व प्रेम की मिसाल खड़ी कर दी। आज हमें भी समाज के प्रति अपने कर्तव्य और निश्छल प्रेम को दिखाने के लिए सामाजिक दूरी बनाए रखना है। हाथ बढ़ाना है लेकिन मिलाना नहीं है। जिस प्रकार भरत जी राम जी से शारीरिक रूप से तो दूर थे,लेकिन मानसिक रूप से कभी भी दूर नहीं थे। ठीक उसी प्रकार हमें भी कुछ समय के लिए अपने समाज से शारीरिक रूप से दूर रहकर मानसिक सामंजस्य बनाए रखना है। जिस प्रकार संत-महात्मा समाज से दूर रहकर समाज कल्याण के लिए घोर तपस्या और साधना करते हैं,ठीक उसी प्रकार हमें भी करना चाहिए। जब कभी भी हमारे समाज पर संकट आए तो उसकी सुरक्षा के लिए हमें उचित कदम जरुर उठना चाहिए। ऐसा करने से कष्ट तो होगा,लेकिन परिणाम कल्याणकारी होगा। मानवता की रक्षा के लिए भगवान को अवतार लेना पड़ता है। मानव शरीर धारण कर वे भी अनेक प्रकार से कष्ट सह कर मानव धर्म की रक्षा करते हैं और हमें भी ऐसा ही करने के लिए प्रेरित करते हैं। आइए,सब मिलकर समाज के कल्याण के लिए प्रण करें कि चाहे जैसे भी हो,हमारी भलाई के लिए जो भी सामाजिक नियम- कानून बनेंगे हम उसका पालन करेंगे और दूसरों को भी प्रोत्साहित करेंगे। अगर हमें कानून का रखवाला बनाया गया तो पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे। हम ना अन्याय करेंगे,ना ही किसी को करने देंगे। हम कुछ भी ऐसा नहीं करेंगे जिससे किसी को दु:ख हो। हमारा हर कदम समाज के कल्याण के लिए उठेगा।

परिचय–उमेशचन्द यादव की जन्मतिथि २ अगस्त १९८५ और जन्म स्थान चकरा कोल्हुवाँ(वीरपुरा)जिला बलिया है। उत्तर प्रदेश राज्य के निवासी श्री यादव की शैक्षिक योग्यता एम.ए. एवं बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण है। आप कविता,लेख एवं कहानी लेखन करते हैं। लेखन का उद्देश्य-सामाजिक जागरूकता फैलाना,हिंदी भाषा का विकास और प्रचार-प्रसार करना है।

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