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फाल्गुन के रंग-जीवन संग

डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’
सोलन(हिमाचल प्रदेश)
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष…

हिन्दू पंचाग का फाल्गुन,
अंतिम है महीना
आनंद और उल्लास,
से पूरित है यह महीना।

सर्दी घटने लगती है,
गर्मी बढ़ने लगती है
बसंत की शुरुआत होती है,
प्रेम और रिश्तों में
बहार आती है।

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को,
माँ लक्ष्मी और माँ सीता
की पूजा करते हैं,
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी में
भगवान शिव की उपासना करते हैं।

फाल्गुन में जन्म हुआ था,
चंद्रमा का
इसलिए फाल्गुन में चंद्रमा,
की उपासना करते हैं
और अपने जीवन में,
शीतलता प्राप्त करते हैं।

प्रेम और अध्यात्म का,
पर्व होली भी
फाल्गुन में आता है,
खुशियों के रंग हमारे
जीवन में भर जाता है।

फाल्गुन में भगवान,
श्रीकृष्ण की पूजा करें
अपने जीवन को,
खुशियों से भरें।

फाल्गुन रंगों का महीना है,
आपके जीवन में
खुशियों के रंग भरें।
पुरानी दुश्मनी को भुलाकर,
एक नयी शुरूआत करें॥

परिचय-डॉ. प्रताप मोहन का लेखन जगत में ‘भारतीय’ नाम है। १५ जून १९६२ को कटनी (म.प्र.)में अवतरित हुए डॉ. मोहन का वर्तमान में जिला सोलन स्थित चक्का रोड, बद्दी(हि.प्र.)में बसेरा है। आपका स्थाई पता स्थाई पता हिमाचल प्रदेश ही है। सिंधी,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले डॉ. मोहन ने बीएससी सहित आर.एम.पी.,एन. डी.,बी.ई.एम.एस.,एम.ए.,एल.एल.बी.,सी. एच.आर.,सी.ए.एफ.ई. तथा एम.पी.ए. की शिक्षा भी प्राप्त की है। कार्य क्षेत्र में दवा व्यवसायी ‘भारतीय’ सामाजिक गतिविधि में सिंधी भाषा-आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का प्रचार करने सहित थैलेसीमिया बीमारी के प्रति समाज में जागृति फैलाते हैं। इनकी लेखन विधा-क्षणिका,व्यंग्य लेख एवं ग़ज़ल है। कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन जारी है। ‘उजाले की ओर’ व्यंग्य संग्रह)प्रकाशित है। आपको राजस्थान द्वारा ‘काव्य कलपज्ञ’,उ.प्र. द्वारा ‘हिन्दी भूषण श्री’ की उपाधि एवं हि.प्र. से ‘सुमेधा श्री २०१९’ सम्मान दिया गया है। विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अध्यक्ष(सिंधुडी संस्था)होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य का सृजन करना है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं प्रेरणापुंज-प्रो. सत्यनारायण अग्रवाल हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी को राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिले,हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए। नई पीढ़ी को हम हिंदी भाषा का ज्ञान दें, ताकि हिंदी भाषा का समुचित विकास हो सके।”

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