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`प्रदूषण` गायब रहा चुनाव से

ललित गर्ग
दिल्ली

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राजधानी दिल्ली में अक्सर वायु एवं जल प्रदूषण एक गंभीर समस्या के रूप में खड़ा रहता है,लेकिन इस गंभीर समस्या का दिल्ली विधानसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा न बनना विडम्बनापूर्ण है। असल में देखें तो संकट वायु प्रदूषण का हो या फिर स्वच्छ जल का,इनके मूल में विकास की अवधारणा के साथ-साथ राजनीतिक दलों की भ्रांत नीतियां एवं सोच है,यही कारण है इन चुनावों में तीनों ही प्रमुख दल चाहे भारतीय जनता पार्टी,कांग्रेस एवं आम आदमी पार्टी इस मुद्दे पर मौन धारण किए रही। हर समय वायु प्रदूषण की चपेट में रहने वाली दिल्ली इस विकराल होती समस्या का समाधान चाहती है,क्योंकि वायु प्रदूषण दिल्ली के लोगों के स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरा बन चुका है,मनुष्य की साँसें उलझती जा रही है,जीवन पर संकट मंडरा रहा है,लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि एकदम अनियंत्रित होती स्थिति के बावजूद सत्ता के आकांक्षी तीनों ही दल कोई समाधानमूलक वायदा नहीं करते हुए दिखाई नहीं दे दिए।
तीनों ही दल किसी तरह दिल्ली की सत्ता हासिल करना चाह रहे हैं। चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल हिन्दू-मुसलमान की राष्ट्र तोड़ने की बहसों में जनता को उलझाए रखना चाहते हैं,लेकिन वे वायु-जल प्रदूषण जैसी समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। अब आम जनता भी इन बहसों से ऊब चुकी हैl दिल्ली के हजारों नागरिकों ने विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों से स्वच्छ वायु के लिए ठोस समाधान की मांग की। `शुद्ध साँसें मेरा अधिकार है` के साथ नागरिक आांदोलन ‘दिल्ली धड़कने दो’ शुरू हुआ है,जो मुखर होकर वायु प्रदूषण के समाधानों के प्रति अपने जनप्रतिनिधियों को जवाबदेह बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। निश्चित ही यह आन्दोलन सही समय पर शुरु हुआ है,लेकिन चुनाव में खड़े उम्मीदवार एवं उनके राजनीतिक दल फिर भी इस बड़ी समस्या के लिये कोई ठोस आश्वासन देने एवं इसे चुनावी मुद्दा बनाने को तत्पर दिखाई नहीं दिए। खराब होती वायु की गुणवत्ता में सुधार के लिए किसी तरह की राजनीतिक मंशा सामने नहीं आना,चुनाव की उपयोगिता पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है।
`दिल्ली धड़कने दो` अभियान ने २० विधानसभा क्षेत्रों के करीब २ लाख लोगों को जोड़ने का लक्ष्य रखा है और राजनीतिक दलों को प्रेरित करने की योजना बनाई है कि,वे अपने चुनावी घोषणा-पत्र के वायदों से आगे बढ़ें। दिल्ली की जनता रोजाना चैबीसों घंटे घातक वायु प्रदूषण के साये में रहती हैं लेकिन राजनीतिक दल और सरकार इस मुद्देें को गंभीरता से नहीं लेतीं।
दिल्ली के विधानसभा चुनाव में वायु एवं जल प्रदूषण ही जीत-हार का माध्यम बनना चाहिए,क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक है। हालांकि,वायु प्रदूषण पूरी दुनिया,खासकर तीसरी दुनिया के देशों के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वायु प्रदूषण और बच्चों के स्वास्थ्य पर पिछले दिनों जारी एक रिपोर्ट के अनुसार ९३ प्रतिशत बच्चे प्रदूषित हवा में साँस ले रहे हैं। ५ साल से कम उम्र के १० बच्चों की मौत में से एक बच्चे की मौत प्रदूषित हवा की वजह से हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वायु प्रदूषण और बच्चों के स्वास्थ्य पर जारी इस रिपोर्ट के अनुसार २०१६ में वायु प्रदूषण से होने वाले श्वसन संबंधी बीमारियों की वजह से दुनिया भर में ५ साल से कम उम्र के
५.४ लाख बच्चों की मौत हुई है। भारतीय शोधकर्ताओं के एक अध्ययन में बीमारियों को बढ़ावा देने और असमय मौतों के लिए वायु प्रदूषण को तंबाकू उपभोग से भी अधिक जिम्मेदार पाया गया है।
कैसा विचित्र राजनीतिक चरित्र निर्मित हो रहा है कि,इस ज्वलंत एवं जानलेवा समस्या पर भी राजनीतिक दल एक-दूसरे पर इसका दोष मढ़ने के प्रयास कर रहे हैं,समस्या की जड़ को पकड़ने की बजाय इस तरह के अतिश्योक्तिपूर्ण आरोपों को किसी भी रूप में तर्कपूर्ण नहीं कहा जा सकता। लोगों ने दिल्ली एवं ऐसे ही महानगरों की सीमा से सटे खेतों पर अवैध कालोनियां काट ली। इसके बाद जहां कहीं सड़क बनीं,उसके आसपास के खेत,जंगल,तालाब को वैध या अवैध तरीके से कांक्रीट के जंगल में बदल दिया गया। देश के अधिकांश उभरते शहर अब सड़कों के दोनों ओर बेतरतीब बढ़ते जा रहे हैं। न तो वहां सार्वजनिक परिवहन है,न ही सुरक्षा,न ही बिजली-पानी की न्यूनतम व्यवस्था। यह विडम्बना ही है कि खेती की जमीनों का अधिग्रहण कर-करके बड़े शहर आबाद किये जाते हैं और इनके आबाद हो जाने के बाद उसे ही असभ्य कह कर दुत्कार दिया जाता है। राजधानी दिल्ली के विस्तार की गाथा इसके बीच बसे हुए गांव ही बिन कहे सुनाते रहते हैं। दरअसल स्वतन्त्र भारत के विकास के लिए हमने जिन नक्शे कदम पर चलना शुरू किया,उसके तहत बड़े-बड़ेे शहर पूंजी केन्द्रित होते चले गये और रोजगार के स्रोत भी ये शहर ही बने। इनका बेतरतीब विकास स्वाभाविक रूप से इस प्रकार हुआ कि,यह राजनीतिक दलों के अस्तित्व और प्रभाव से जुड़ता चला गया,लेकिन पर्यावरण एवं प्रकृति से कटता गया।
दिल्ली इन दिनों जिस जानलेवा वायु प्रदूषण की शिकार है,लोग अपने घरों तक में सुरक्षित नहीं हैं। जल निकासी की माकूल व्यवस्था न होना शहर में जल भराव का स्थायी कारण बनता रहा है। शहर के लिए सड़क चाहिए,बिजली चाहिए,जल चाहिए,मकान चाहिए और दफ्तर चाहिए। जंगल को हजम करने की चाल में पेड़,जंगली जानवर,पारंपरिक जल स्रोत सभी कुछ नष्ट हो रहा है। यह वह नुकसान है जिसका हर्जाना संभव नहीं है और यही वायु प्रदूषण का बड़ा कारण है। इन चुनावों में वायु प्रदूषण की रोकथाम से संबंधित दिल्ली की मांग पर अमल करने वाले दल को ही मतदाता विजयी बनाए और इस विकराल समस्या से निजात दिलानेे के लिए इलेक्ट्रिक रिक्शा के बड़े पैमाने पर चलन,चार्जिंग इंफ्रास्टक्चर को बढ़ाने और सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहित करने की योजना को लागू करने वाले दल को ही एक मौका दिया जाना चाहिए था,पर अब परिणाम आने पर ही यह साफ होगा।
दिल्ली में सीवर और नालों की सफाई भ्रष्टाचार का बड़ा माध्यम है। यह कार्य किसी जिम्मेदार एजेंसी को सौंपना आवश्यक है वरना आने वाले दिनों में दिल्ली में कई-कई दिनों तक पानी भरने की समस्या उपजेगी जो यातायात के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा होगा। केवल पर्यावरण प्रदूषण ही नहीं,दिल्ली सामाजिक और सांस्कृतिक प्रदूषण की भी गंभीर समस्या उपजा रहे हैं। लोग अपनों से,मानवीय संवेदनाओं से,अपनी लोक परम्पराओं व मान्यताओं से कट रहे हैं। ऐसे कारणों का लगातार बढ़ना ही दिल्ली जैसे महानगरों की वायु प्रदूषण और ऐसे ही पर्यावरण प्रदूषण के नये-नये खतरों को इजाद कर रहा है।

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