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प्रेम मेरा

पवन प्रजापति ‘पथिक’
पाली(राजस्थान)
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काव्य संग्रह हम और तुम से….

आज जो ये चेहरा तुम्हारा,
फूलों-सा है खिला हुआ
लेकिन समय के साथ इसको,
कल मुरझाना ही होगाl

गालों की लाली जो तेरी,
चहुं ओर रोशनी बिखेर रही
कल को इस रोशनी में भी,
अंधेरा छाना ही होगाl

नाजुक से ये होंठ जो तेरे,
फूलों जैसे मुस्काते हैं
कल को इन होंठों से भी,
मुस्कान को जाना ही होगाl

कजरारे-कजरारे नैनों,
से तुम घायल करती हो
कल को इन नैनों को भी,
खुद घायल होना ही होगाl

काले-काले मेघों को,
लज्जित करते हैं केश आज
कल को इन केशों को भी,
खुद लज्जित होना ही होगाl

ये रूप-रंग मदमाता यौवन,
ये सब-कुछ तो नश्वर है
चिर युवा है प्रिये प्रेम मेरा,
जो सदा अजर-अमर होगाll

परिचय-पवन प्रजापति का स्थाई निवास राजस्थान के जिला पाली में है। साहित्यिक उपनाम ‘पथिक’ से लेखन क्षेत्र में पहचाने जाने वाले श्री प्रजापति का जन्म १ जून १९८२ को निमाज (जिला-पाली)में हुआ है। इनको भाषा ज्ञान-हिन्दी,अंग्रेजी एवं राजस्थानी का है। राजस्थान के ग्राम निमाज वासी पवन जी ने स्नातक की शिक्षा हासिल की है। इनका स्वयं का व्यवसाय है। लेखन विधा-कविता,लेख एवं कहानी है। ब्लॉग पर भी कलम चलाने वाले ‘पथिक’ की लेखनी का उद्देश्य-मानव कल्याण एवं राष्ट्रहित के मुद्दे उठाना है। आपकी दृष्टि में प्रेरणा पुंज-स्वामी विवेकानन्द जी हैं। इनकी विशेषज्ञता- भावनात्मक कविता एवं लघुकथा लेखन है।

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