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एक पत्र लक्ष्मी जी और गणेश जी के नाम

मनोज कुमार सामरिया ‘मनु’
जयपुर(राजस्थान)
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पूज्य माँ लक्ष्मी और प्रथम पूज्य गणेश जी और माँ सरस्वती,
चरण कमल में सादर प्रणाम्l
हे देवादिदेव प्रथम पूज्य,लंबोदराय,विघ्नहर्ता,गौरीसुत,हे महालक्ष्मी,सृष्टिनियामका,हे विष्णुवामांगी,हे विद्या की देवी,हे वेदवासिनी,हे वीणावादिनी आपकी कुशलता की कामना करूँ,इतना साहस मुझमें नहीं हैl हे देव और हे देवी जरा ध्यान को त्याग कर इस अभागे को भी अपनी कृपा दृष्टि की जद में लेंl मेरे व मेरे परिवार के साथ समस्त करूण और आर्त जन के विघ्नों को हर लेंl आप सृष्टि में रिद्धि-सिद्धि के दाता हैं,इस पंच महोत्सव के पावन अवसर पर सभी के काज संवारें,और सभी की चिंता हर के धन धान्य से समृद्ध बनाएंl
दाता और देवियों इस धरा का हाल आपसे छिपा नहीं है,धन का दुरूपयोग किस कदर हो रहा है ? विद्या प्राप्त मनुष्य की क्या गति है ? वे कितने अहंकारी हो गये हैं ? सब आपकी दृष्टि में हैl आप मौन तो नहीं होंगीl निस्संदेह मैं देख सकता हूँ कि,जो कुछ हो रहा है आपकी इच्छा मात्र से हो रहा हैl अदभुत है आपकी लीला,माँ आपके ही कारण लोग मान-सम्मान पाते हैंl आपके घर में प्रवेश मात्र से सब सद्गुणों से युक्त हो जाते हैं,असंभव भी संभव हो जाता हैl आपका अनादर मनुष्य को कंगाल कर देता है,अभिमानियों का अभिमान आप क्षण भर में तोड़ देती होl आपके साथ विराजित देव गजानन्द और देवी सरस्वती का शुभ योग सदैव हम संतजनों पर बना रहे,यही कामना हैl
माते्,मैं अधिक धन की कामना नहीं करता,बस अहंकार न आने पाये और मेरा परिवार-मेरे बच्चे किसी का मुँह न ताकें और मेहमानों का उचित मान कर सकूँl जो आपने दिया है वह पर्याप्त है माते्l माँ शारदे का वरद्हस्त और गौरीसुत का शुभाशीष मेरे शीश पर रहेl माँ मन के भटकाव को दूर कर समस्त कलुष कषायों का नाश करनाl हे माँ शारदे,मैं अपने कर्तव्य पथ से भटकूँ नहींl हे माँ शारदे,मेरा विवेक विनाश काल में मेरा साथ देl हे देव,इतनी सामर्थ्य भर देना मुझ बालक को,कि कभी आपको बिसरूँ नहीं,भूलूँ नहींl
जिस प्रकार यह दीपों की कतार जग के तिमिर का नाश कर रही है,उसी प्रकार हे देव मेरे मन का अंधकार भी मिट जाएl ये दीपावली सभी के हृदय में उज्ज्वलता लाएl विपन्नता मिटे,क्रन्दन मिटे,चहूँओर सुख,शांति और स्नेह का वास होl
इस पंचमहोत्सव के पावन अवसर पर स्वाति नक्षत्र की शुभ बेला में सपरिवार आप सभी को सादर अपनी हृदय कुटिया में आमंत्रित करता हूँl माँ लक्ष्मी,गणेश जी और माँ शारदे आप अपने नियत आसन पर विराजें,ताकि यह महोत्सव सम्पन्न हो सकेl

परिचय-मनोज कुमार सामरिया का उपनाम `मनु` है,जिनका  जन्म १९८५ में २० नवम्बर को लिसाड़िया(सीकर) में हुआ है। जयपुर के मुरलीपुरा में आपका निवास है। आपने बी.एड. के साथ ही स्नातकोत्तर (हिन्दी साहित्य) तथा `नेट`(हिन्दी साहित्य) की भी शिक्षा ली है। करीब ८  वर्ष से हिन्दी साहित्य के शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं और मंच संचालन भी करते हैं। लगातार कविता लेखन के साथ ही सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेख,वीर रस एंव श्रृंगार रस प्रधान रचनाओं का लेखन भी श्री सामरिया करते हैं। आपकी रचनाएं कई माध्यम में प्रकाशित होती रहती हैं। मनु  कई वेबसाइट्स पर भी लिखने में सक्रिय हैंl साझा काव्य संग्रह में-प्रतिबिंब,नए पल्लव आदि में आपकी रचनाएं हैं, तो बाल साहित्य साझा संग्रह-`घरौंदा`में भी जगह मिली हैl आप एक साझा संग्रह में सम्पादक मण्डल में सदस्य रहे हैंl पुस्तक प्रकाशन में `बिखरे अल्फ़ाज़ जीवन पृष्ठों पर` आपके नाम है। सम्मान के रुप में आपको `सर्वश्रेष्ठ रचनाकार` सहित आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ सम्मान आदि प्राप्त हो चुके हैंl  

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