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पुरुषप्रधान विश्व रचि राखा

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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हम लोग कितने बड़े ढोंगी हैं ? हम डींग मारते हैं कि हमारे भारत में नारी की पूजा होती है। नारी की पूजा में ही देवता रमते हैं। ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते तत्र देवताः।’ अभी-अभी विश्व बैंक की एक रपट आई है,जिससे पता चलता है कि नारी की पूजा करना तो बहुत दूर की बात है,उसे पुरूष के बराबरी का दर्जा देने में भी भारत का स्थान १२३ वां है। याने दुनिया के १२२ देशों की नारियों की स्थिति भारत से कहीं बेहतर है। १९० देशों में से १८० ऐसे हैं,जिसमें नर-नारी समानता नदारद है। सिर्फ १० ऐसे हैं,जिनमें स्त्री और पुरुषों के अधिकार एक-समान हैं। ये हैं-बेल्जियम,फ्रांस, डेनमार्क,लातविया,लग्जमबर्ग,स्वीडन,आइसलैंड, कनाडा,पुर्तगाल और आयरलैंड। ये देश या तो भारत के प्रांतों के बराबर हैं या जिलों के! इनमें से एक देश भी ऐसा नहीं है,जिसकी संस्कृति और सभ्यता भारत से प्राचीन हो। ये लगभग सभी देश ईसाई धर्म को मानते हैं। ईसाई धर्म में औरत को सभी पापों की जड़ माना जाता है। यूरोप में लगभग १ हजार साल तक पोप का राज चलता रहा। इसे इतिहास में अंधकार-युग के रूप में जाना जाता है लेकिन पिछले ढाई-तीन सौ साल में यूरोप ने नर-नारी समता के मामले में क्रांति ला दी है,पर भारत, चीन और रूस जैसे बड़े देशों में अभी भी शासन, समाज,अर्थ-व्यवस्था व शिक्षा आदि में पुरूषवादी व्यवस्था चल रही है। केरल और मणिपुर को छोड़ दें तो क्या वजह है कि सारे भारत में हर विवाहित स्त्री को अपना उपनाम बदलकर अपने पति का नाम लगाना पड़ता है ? पति क्यों नहीं पत्नी का उपनाम ग्रहण करता है ? पैतृक संपत्ति तो होती है लेकिन ‘मातृक’ संपत्ति क्यों नहीं होती ? बच्चों के नाम के आगे सिर्फ पिता का नाम लिखा जाता है, माता का क्यों नहीं ? दुनिया के कितने देशों में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री महिलाएं हैं ? इंदिरा जी भारत में प्रधानमंत्री इसलिए नहीं बनीं कि वे महिला थीं,बल्कि इसलिए बनीं कि वे नेहरू जी की बेटी थीं। भारत में कुछ ऋषिकाएं और साध्वियां जरूर हुई हैं लेकिन दुनिया के देशों और धर्मों में लगभग सभी मसीहा और पैगंबर पुरुष ही हुए हैं। स्त्रियां ही ‘सती’ क्यों होती रहीं,पुरूष ‘सता’ क्यों न हुए ? इस पुरुषप्रधान विश्व का रूपांतरण अपने-आप में महान क्रांति होगी।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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