बोधन राम निषाद ‘राज’
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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(रचना शिल्प:१६/११)
श्याम बसे राधा के मन में,
यदु नंदन घन श्याम।
हुई बावरी दर्शन खातिर,
ढूँढे सुबह व शाम॥
वन-वन फिरती प्रेम दिवानी,
कालिंदी के पास।
लगन लगे लीलाधारी से,
एक आस विश्वास॥
हर साँस में श्याम रमा है,
रटती है अविराम।
हुई बावरी दर्शन खातिर,…
यमुना के पावन जल भीतर,
परछाई चितचोर।
कहाँ छुपे हो कान्हा मेरे,
गलियन करती शोर॥
मन आँगन में हे गिरधारी,
बरसा दो सुखधाम।
हुई बावरी दर्शन खातिर,…
श्याम बिना आधी है राधा,
जैसे बाती तेल।
जिनके बिना नहीं सम्भव है,
सकल सृष्टि का खेल॥
ऐसे बंशीधर को करती,
बारम्बार प्रणाम।
हुई बावरी दर्शन खातिर,…॥