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पावस

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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पावस-
पावस मौसम आ गया,देखो सुन्दर आज।
कृषक वर्ग करने लगे,खेतों में अब काज॥

मानसून-
मानसून मौसम सुखद,ठंडी चले बयार।
मन हर्षित होने लगा,पा कर तेरा प्यार॥

वारिद-
वारिद घिरने हैं लगे,देखो अब बरसात।
सुन्दर पड़े फुहार की,मिली हमें सौगात॥

पछुआ-
चली पवन पछुआ यहाँ,बनकर आँधी रूप।
घोर तबाही है मची,भरे नदी अरु कूप॥

कृषक-
कृषक हुआ खुश आप ही,मन में उठे उमंग।
चलते खेतों की तरफ,बैलों को ले संग॥

हरीतिमा-
हरीतिमा छायी यहाँ,धरती हुई निहाल।
मन आनंदित हैं लगे,मानव अब खुशहाल॥

दामिनी-
चम चम चमके दामिनी,बादल अब घनघोर।
गर्जन जोरों पर यहाँ,जिसका ओर न छोर॥

चातक-
स्वाति बूँद की आस में,चातक हो कर धीर।
करे प्रतीक्षा वर्ष भर,मन में हो गम्भीर॥

दादुर-
दादुर टर-टर हैं करे,जब आती बरसात।
करते कोलाहल सभी,सुबह शाम अरु रात॥

वृक्षारोपण-
वृक्षारोपण कर चलें,पर्यावरण सुधार।
आओ शुभ कारज करें,नित्य मनें त्यौहार॥

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