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राम! तुम्हारे प्रण के आगे,तीन वचन-धन हार गई

संदीप ‘सरस’
सीतापुर(उत्तरप्रदेश)
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जग कहता है,पुत्र मोह में,राघव को वनवास दे दिया,
किसे पता संकल्प साधने,जीवनभर का त्रास ले लिया।
राजतिलक की परिपाटी में,बनकर अड़चन हार गई हूँ॥

जान चुकी तुमको जाना है,किन्तु वचन की लाज बचाना,
देख रहे जो राह तुम्हारी,उनके नयन जुड़ाकर आना।
जीत सकूँगी वह मर्यादा,मैं जो पावन हार गई हूँ॥

हेतु बनाकर सीता को जब,तुमने है युगधर्म निभाया,
मान तुम्हारे व्रत का रखने,मैंने भार्या धर्म लजाया।
ताने सह-सह कर दुनिया के,मैं अन्तर्मन हार गई हूँ॥

धर्म-ध्वजा की कीर्ति तुम्हारी,अमर धरा के साथ पलेगी,
किन्तु नाम पर मेरे,ममता,युगों-युगों तक हाथ मलेगी।
तुम जीते संग्राम जगत का,मैं घर आँगन हार गई हूँ॥

परिचय-साहित्य जगत में संदीप मिश्र जाना-पहचाना नाम है,जो उत्तरप्रदेश के बिसवाँ(जिला-सीतापुर) में रहते हैंL सम्प्रति से कवि,साहित्यकार और समीक्षक के साथ ही संस्थापक-संयोजक(साहित्य मंच)तथा साहित्य सम्पादक (दैनिक समाचार-पत्र में) हैंL आपकी विशेष उपलब्धि कविता कोश व दोहा कोश में रचनाएँ सम्मिलित होना, राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं सहित टी.वी. चैनल,रेडियो से रचनाएं प्रकाशित-प्रसारित व पुरस्कृत होना हैL इनकी लेखन विधा-पद्य तथा गद्य भी हैL ५ जुलाई १९७५ को बिसवाँ में जन्मे श्री मिश्र ने एम.ए.(हिन्दी साहित्य)की शिक्षा हासिल की हैL प्रकाशन में आपके नाम-`कुछ ग़ज़लें कुछ गीत हमारे`(काव्य संकलन)तथा कई साझा संकलन भी हैंL ऐसे ही शीघ्र प्रकाश्य-गीत संग्रह एवं ग़ज़ल संग्रह आदि हैंL कार्यक्षेत्र-साहित्य तथा पत्रकारिता हैL कई अखबारों में नियमित स्तम्भ प्रकाशित कराते रहने तथा नियमित समीक्षा स्तम्भ में भी सौ से अधिक पुस्तकों की समीक्षा कर चुके `सरस` को सम्मान के निमित्त-उत्तर प्रदेश से बाल कविता हेतु पुरस्कृत(१९९४),साहित्य एवं पत्रकारिता के लिए पुरस्कृत (१९९६),साहित्य गौरव सम्मान(१९९७),सृजन सम्मान(१९९८),युवा कवि पुरस्कार(१९९९) तथा नेपाल द्वारा सन्त तुलसी स्मृति सम्मान(२०१९) सहित अन्य से भी सम्मानित किया गया हैL

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